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Ravi Prakash
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Mujhe Manzilon Se Dar Lagta Hai Raaston Se Nahin..

Ravi Prakash's Blog

आओ सजनी // रवि प्रकाश

आओ इक दूजे से कह लें

दिन का हाल रात की बातें

सौगातें हर बीते पल की

याद करें फिर से सजनी

रजनी ये फिर क्यों लौटेगी

जो बीत गई तो बीत गई

कल रीत नई चल निकलेगी

जब आएगा सूरज नूतन

उपवन-उपवन क्या बात चले

गलियों में कैसी हलचल हो

कलकल हो कैसी सरिता में

अम्बर का विस्तार न जाने

अनजाने रंगों में ढल कर

सारे जग पर छा जायेगा

गा पाएगा फिर भी क्या मन

वही प्रीत का गीत पुराना

वही सुहाना मौसम फिर से

लौटेगा क्या मन के गुलशन

धड़कन-धड़कन नाम तुम्हारा

इसी तरह क्या ले पाएगी

दे पाएगी सपने हमको

नींद हमारी वही सुहाने

वही तराने जिनको गा कर

तन-मन पावन हो जाता था

खो जाता था हर दुख जिनमें

लौटेंगे, ये विश्वास नहीं

अहसास नहीं ये फिर होंगे

जाने जीवन कैसे बीते

रीते-रीते साँझ-सवेरे

चौखट पे यूँ पसरे होंगे

मानो युग से वहीं पड़े हों

और अड़े होंगे कितने ही

नाउम्मीदी के साये भी

आएगी फिर धूप कहाँ से

जो तन मन को गरमाहट दे

आहट दे थोड़ी ख़ुशियों की

थोड़ी… Continue

Posted on January 26, 2017 at 7:43pm — 2 Comments

ओ री चंदनिया//रवि प्रकाश

ओ री चंदनिया!
ओ री चंदनिया तुझको सब तारे क्या कहते हैं
मैं तो धड़कन कहता हूँ ये सारे क्या कहते हैं।
क्या कहते हैं अम्बर के जागे जागे उजियारे
मीलों मीलों धरती के अँधियारे क्या कहते हैं।

कैसा लगता है तुझको बादल जब गाते हैं
कुछ तन को छू लेते हैं कुछ मन तक आते हैं।
सिहरन सी होती है क्या बिजली की अँगड़ाई से
हुलसा करता है हियरा मिलकर क्या पुरवाई से।
बूंदें जब छू लेती हैं तुझको सावन भादों में
अक्सर क्या खो जाती है तू भी मेरी यादों में।
परबत के सूनेपन पे छाया कुहरा क्या बोला
लहरों से पास बुला के सागर गहरा क्या बोला।
ओ री जोगनिया अक्सर क्या सुनता जंगल तुझसे
पत्तों में बजने वाले इकतारे क्या कहते हैं।
-08.12.2016
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Posted on January 16, 2017 at 8:33am — 7 Comments

ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में) // रवि प्रकाश

ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में)
बहर-SSSSSSSSSSS

जीवन का एकाकीपन मिट जावेगा
आन मिलेंगे पी तो मन इतरावेगा।
  आ जावेंगे बिछुड़े संगी-साथी भी
  कौन कहाँ लौं मन ऐसे तरसावेगा।
जब निरखेंगे नैन किसी के नेह भरे
झूलों का मौसम फिर से फिर आवेगा।
  परसेगा कब तक शून्य हमारी निद्रा
  अब तो कोई सपना दर खटकावेगा।
मन हुलसेगा सावन के पहले घन सा
झूमेगा,हर ओर सुधा बरसावेगा।
  खो देंगे हम भी उस पल सारी निजता
  रंग किसी का जब हस्ती पे छावेगा।
जी ही जी में नित्य खिलाया जिसको वो
पुष्प हमारे उपवन को महकावेगा।
  प्राण-प्रतिष्ठा होगी सूने मंदिर में
  पूजन-अर्चन का दीपक जल जावेगा।
आँखों में सब बाँचेगा वो मनभावन
वाणी का यह कोष धरा रह जावेगा।
  छँट जावेंगे आप उदासी के बादल
  वो मीठी बातों से जी बहलावेगा।
हाल हमारे जी का यूँ होगा बिरला
मूरख सब खोकर भी सब पा जावेगा।
-14.08.2016
मौलिक एवं अप्रकाशित।

Posted on November 24, 2016 at 1:42pm — 4 Comments

है यही पाथेय मेरा // रवि प्रकाश

है यही पाथेय मेरा

एक नन्हा सा अकेला

पल कि जिसमें एक मैं हूँ एक तुम हो

दूर तक कोई नहीं है

और भीतर झिलमिलाते कोटि दीपक

टिमटिमाते हैं सितारे और सूरज भी दमकते

फूटते निर्झर सहस्रों

अति सघन हिमरेख गल कर बह निकलती,

चाह कर भी छुप न पाती

हैं उमंगें दो दिलों की

देह आगे और आगे ही सरकती

चाहती अस्तित्व का अंतिम सिरा

छू कर पिघलना,

देखते हैं नैन ऐसे

आ गया हो ज्वार जैसे

और फिर यूँ बंद होते

लाज में लिपटे अचानक

दूर परबत के शिखर पे

सूर्य की अंतिम किरण

ज्यों भूल कर सारा अहम् सब लालिमा भी

सांझ के रंगों में हो कर लीन

खुद को पूर्ण माने,

कँपकँपाते होंठ जैसे गा रहे हैं

मौन होकर राग कोई

जो हमारी बस हमारी धड़कनें पहचानती हैं,

हाथ दोनों नींद से जब जाग कर

हैं टोहते सारी शिराएँ

और फिर कुछ याद करके थम गये हैं

थाम कर मेरी भुजाएँ

पाँव झिझके और सहमे बढ़ चले हैं

खोजते कोई सहारा और पहरा तोड़ते

फिर खो के सुध-बुध

ठौर अपना ही भुला के रुक गए हैं

लाज की रेखाएँ… Continue

Posted on November 19, 2016 at 2:24pm — 6 Comments

Comment Wall (7 comments)

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At 4:53pm on September 17, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...

At 12:19pm on September 10, 2013, AVINASH S BAGDE said…

"बेहद सुंदर रचना .. आदरणीय रवि प्रकाश जी बहुत बधाई आपकी रचना को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना से सम्मानित और पुरुस्कृत होने के लिए ..शुभकामनाये"

At 11:32pm on September 7, 2013, बृजेश नीरज said…

सर्वश्रेष्ठ रचना पुरूस्कार हेतु आपको हार्दिक बधाई!

At 7:44pm on September 6, 2013, केवल प्रसाद 'सत्यम' said…

आ0 रवि प्रकाश भाई जी,    माह की सर्वश्रेष्ठ रचना के सम्मान हेतु आपको ढ़ेरों शुभकामनाओं सहित बहुत-बहुत हार्दिक बधाई।  सादर,

At 1:26am on September 6, 2013, Abhinav Arun said…

''रूप तुम्हारे'' आपकी इस रचना को 
 श्री रवि प्रकाश जी 
 "महीने की सर्वश्रेष्ट रचना पुरस्कार"

प्राप्त होने पर कोटि कोटि बधाई और शुभकामनायें !!

At 10:16pm on September 5, 2013,
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
said…

आदरणीय रवि प्रकाश जी , आपकी रचना को माह की सर्व श्रेष्ठ रचना घोषित लिये जाने के लिये आपको हार्दिक बधाई !!

At 9:58pm on September 5, 2013,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय रवि प्रकाश जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की रूप तुम्हारे को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना पुरस्कार के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |

आपको पुरस्कार राशि रु 1100 /- और प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस नामित कृपया आप अपना नाम (चेक / ड्राफ्ट निर्गत हेतु), तथा पत्राचार का पता व् फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |


शुभकामनाओं सहित
आपका
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"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
12 hours ago

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