For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है यही पाथेय मेरा // रवि प्रकाश

है यही पाथेय मेरा
एक नन्हा सा अकेला
पल कि जिसमें एक मैं हूँ एक तुम हो
दूर तक कोई नहीं है
और भीतर झिलमिलाते कोटि दीपक
टिमटिमाते हैं सितारे और सूरज भी दमकते
फूटते निर्झर सहस्रों
अति सघन हिमरेख गल कर बह निकलती,
चाह कर भी छुप न पाती
हैं उमंगें दो दिलों की
देह आगे और आगे ही सरकती
चाहती अस्तित्व का अंतिम सिरा
छू कर पिघलना,
देखते हैं नैन ऐसे
आ गया हो ज्वार जैसे
और फिर यूँ बंद होते
लाज में लिपटे अचानक
दूर परबत के शिखर पे
सूर्य की अंतिम किरण
ज्यों भूल कर सारा अहम् सब लालिमा भी
सांझ के रंगों में हो कर लीन
खुद को पूर्ण माने,
कँपकँपाते होंठ जैसे गा रहे हैं
मौन होकर राग कोई
जो हमारी बस हमारी धड़कनें पहचानती हैं,
हाथ दोनों नींद से जब जाग कर
हैं टोहते सारी शिराएँ
और फिर कुछ याद करके थम गये हैं
थाम कर मेरी भुजाएँ
पाँव झिझके और सहमे बढ़ चले हैं
खोजते कोई सहारा और पहरा तोड़ते
फिर खो के सुध-बुध
ठौर अपना ही भुला के रुक गए हैं
लाज की रेखाएँ गहरी
बन रही हैं मिट रही हैं यंत्रवत सी,
और वो शिल्पी जो हमको
पास लाता,दूर करता,फिर मिटाता,फिर बनाता,
ज्वाल करके धूम करता, राख करता,
ठोस करके नीर करता,क्षीर करता,
ताल करता,कूप करता,धार करता
आपगा सा कर प्रवाहित वीचिमाली से मिलाता
या स्वयं ही हमको पारावार करता,
जो कपोलों में,नयन में रंग भरता
फेर कर अनजान कूँची
हर दिशा से देखता है मुस्कुरा के
भेद सारे जानता है
और तय करता है रस्ते,
साथ उसके मौन हम तुम चल दिए हैं
प्रश्न पूछे बिन कोई
चुपचाप यूँ ही ले चले चाहे कहीं भी.....।
बस यही पल! बस यही पाथेय मेरा
ध्येय मेरा, प्रेय मेरा, श्रेय मेरा, गेय मेरा
सर्जना का अन्यतम अवसर यही है
वाद्य जिसमें नाद मंगल का भरा है
बिन्दु भी है,सिंधु भी है कल्पना का
उच्चतम सोपान मेरी साधना का
सत्य की आराधना का
और इसमें तुम समाहित हो
किए सर्वस्व अर्पण
इससे बढ़ उल्लास मुझको
सांस मेरी दे नहीं सकती है शायद
प्यास थोड़ी तो मिटी है
सत्य, त्रेता, द्वापरों की
और कुछ मन्वंतरों की
किन्तु फिर भी ये बता दे
और कितनी रात मुझको जागना है।
- 17.11.2016
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 572

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on January 16, 2017 at 8:27am
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2016 at 7:27pm

बहुत सुंदर शब्द प्रवाह भावनाओं की ऐसी रवानी की पाठक को बहा ले जाए बहुत पसंद आई ये रचना हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ आद० रवि प्रकाश जी |

Comment by Ravi Prakash on November 22, 2016 at 11:08pm
आ० मिथिलेश जी, सराहना एवं उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Ravi Prakash on November 22, 2016 at 11:07pm
धन्यवाद आ० गिरिराज जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 8:12pm
आदरणीय रवि जी, फ़ाइलातुन के प्रवाह में उस एक पल को क्या खूब शाब्दिक किया है। वाह वाह। इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 11:12am

आदरणीय रवि भाई , खूब सूरत, सारगर्भित कविता के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
19 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service