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है यही पाथेय मेरा // रवि प्रकाश

है यही पाथेय मेरा
एक नन्हा सा अकेला
पल कि जिसमें एक मैं हूँ एक तुम हो
दूर तक कोई नहीं है
और भीतर झिलमिलाते कोटि दीपक
टिमटिमाते हैं सितारे और सूरज भी दमकते
फूटते निर्झर सहस्रों
अति सघन हिमरेख गल कर बह निकलती,
चाह कर भी छुप न पाती
हैं उमंगें दो दिलों की
देह आगे और आगे ही सरकती
चाहती अस्तित्व का अंतिम सिरा
छू कर पिघलना,
देखते हैं नैन ऐसे
आ गया हो ज्वार जैसे
और फिर यूँ बंद होते
लाज में लिपटे अचानक
दूर परबत के शिखर पे
सूर्य की अंतिम किरण
ज्यों भूल कर सारा अहम् सब लालिमा भी
सांझ के रंगों में हो कर लीन
खुद को पूर्ण माने,
कँपकँपाते होंठ जैसे गा रहे हैं
मौन होकर राग कोई
जो हमारी बस हमारी धड़कनें पहचानती हैं,
हाथ दोनों नींद से जब जाग कर
हैं टोहते सारी शिराएँ
और फिर कुछ याद करके थम गये हैं
थाम कर मेरी भुजाएँ
पाँव झिझके और सहमे बढ़ चले हैं
खोजते कोई सहारा और पहरा तोड़ते
फिर खो के सुध-बुध
ठौर अपना ही भुला के रुक गए हैं
लाज की रेखाएँ गहरी
बन रही हैं मिट रही हैं यंत्रवत सी,
और वो शिल्पी जो हमको
पास लाता,दूर करता,फिर मिटाता,फिर बनाता,
ज्वाल करके धूम करता, राख करता,
ठोस करके नीर करता,क्षीर करता,
ताल करता,कूप करता,धार करता
आपगा सा कर प्रवाहित वीचिमाली से मिलाता
या स्वयं ही हमको पारावार करता,
जो कपोलों में,नयन में रंग भरता
फेर कर अनजान कूँची
हर दिशा से देखता है मुस्कुरा के
भेद सारे जानता है
और तय करता है रस्ते,
साथ उसके मौन हम तुम चल दिए हैं
प्रश्न पूछे बिन कोई
चुपचाप यूँ ही ले चले चाहे कहीं भी.....।
बस यही पल! बस यही पाथेय मेरा
ध्येय मेरा, प्रेय मेरा, श्रेय मेरा, गेय मेरा
सर्जना का अन्यतम अवसर यही है
वाद्य जिसमें नाद मंगल का भरा है
बिन्दु भी है,सिंधु भी है कल्पना का
उच्चतम सोपान मेरी साधना का
सत्य की आराधना का
और इसमें तुम समाहित हो
किए सर्वस्व अर्पण
इससे बढ़ उल्लास मुझको
सांस मेरी दे नहीं सकती है शायद
प्यास थोड़ी तो मिटी है
सत्य, त्रेता, द्वापरों की
और कुछ मन्वंतरों की
किन्तु फिर भी ये बता दे
और कितनी रात मुझको जागना है।
- 17.11.2016
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Ravi Prakash on January 16, 2017 at 8:27am
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2016 at 7:27pm

बहुत सुंदर शब्द प्रवाह भावनाओं की ऐसी रवानी की पाठक को बहा ले जाए बहुत पसंद आई ये रचना हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ आद० रवि प्रकाश जी |

Comment by Ravi Prakash on November 22, 2016 at 11:08pm
आ० मिथिलेश जी, सराहना एवं उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Ravi Prakash on November 22, 2016 at 11:07pm
धन्यवाद आ० गिरिराज जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 8:12pm
आदरणीय रवि जी, फ़ाइलातुन के प्रवाह में उस एक पल को क्या खूब शाब्दिक किया है। वाह वाह। इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 11:12am

आदरणीय रवि भाई , खूब सूरत, सारगर्भित कविता के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

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