For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ मेरी जान! //रवि प्रकाश

ओ मेरी जान!
तुम्हें जान से कम कुछ कहूँ
तो कितना कम लगता है
वैसे तो हर संबोधन में तुम केवल
अंजुरी भर ही आते हो,
फिर भी जब कहती हूँ अपनी जान तुम्हें
मैं ख़ुद को ज़िंदा पाती हूँ,
मुझको यूँ लगता है
जैसे दूर कहीं क्षितिज पर
दो अलग अलग उड़ते बादल
अपना-अपना रंग-रूप,आकार भूल कर
एक दूजे में घुलमिल जाएँ
और अलग कर पाना अब उनको
नामुमकिन बात लगे प्यारे!
(देखो मैं भी कविता करने लगी हूँ...वाह! वाह!)
और बताऊँ?
क्यों बताऊँ?
छोड़ो, बुरा मान जाओगे!
अच्छा बोल रही हूँ बाबा!
नाराज़ क्यों होते हो?
बस यही कि......
तुम कितने बुद्धू हो!
हा हा हा हा....
कैसे भोलेपन से कह लेते हो
कि-"मेरे होने न होने से क्या है
तुम ख़ुद प्यारी हो,ज़िंदादिल हो
हर तरह से खुशियों के क़ाबिल हो"
उफ्फ, कैसे बदलूँ सोच तुम्हारी
न जाने कब मानोगे!
और सच कहूँ तो यही बात तुम्हारी
(ख़ुद को मेरी खुशियों की
वजह न मानने वाली यार...)
मुझको मुझसे दूर करके
पास तुम्हारे ले जाती है।
और भला ये भी तुम कैसे कह लेते हो
कि कौन चाहतों से तुमको देखा करता है!
कौन तुम्हारी सुनता है!
मन ही मन तुमको पूजा करता है!
मुझसे पूछो तो जानो
तुम यूँ ही अनजाने में भी
हँस कर देखो इसको, उसको, जिसको भी
वो बरसों तक महसूस करे
तुम्हारी निश्छल आँखों को
(पर तुम मानोगे थोड़े ही....चोर कहीं के!)
और सुनोगे?
रहने दो उकता जाओगे
तुमको सब मालूम तो है
मैं तो पागल हूँ जाने क्या क्या सोचा करती हूँ
तुम हँसते होंगे चुपके-चुपके........
अच्छा कहती हूँ यार!
जब मैं मंदिर की सीढ़ी चढ़ती हूँ
(केवल मैं ही
क्योंकि तुम तो नास्तिक कहलाते हो....गंदे बच्चे!)
और आदतन तुम कहते हो
अच्छा वर, अच्छा घर, अच्छा ससुर माँगना,
मैं मुँह फेर चल देती हूँ
शायद तुमको मालूम नहीं
तुम जो मिल गए हो बिन माँगे मुझको
अचानक यूँ ही थोड़े से जप से, थोड़े तप से
उसके लिए मैं
उस विराट के एक अकिंचन बुत के आगे
बस धन्यवाद कह लेती हूँ
और रोमांचित होती हूँ कि
बाहर तुम हो
मेरी... केवल मेरी राह देखते
(पता है मैं इसीलिए जानबूझ कर
ज़रा देर से आती हूँ)
दुनिया तुमको अपना कहने को तरस रही है
और तुम मुझको अपना कहते हो
इससे बढ़ कर कुछ माँगूँ तो
मैं अपराधी,मेरा तन-मन पापी है।
ओ जान मेरी!
तुम्हें जान से कम क्या बोलूँ मैं
तुम ही बोलो!
ओह, मगर तुम तो बुद्धू हो!
बोलोगे कि नाम ही ले लो
(पागल..........बेशर्म कहीं के!)
जानते सब हो मगर मानते नहीं हो कुछ भी।
-29.10.2016
मौलिक एवं अप्रकाशित।

Views: 605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on November 5, 2016 at 11:35pm
धन्यवाद समर कबीर जी।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2016 at 5:28pm
जनाब रवि प्रकाश जी आदाब,बढ़िया लगी आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
37 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service