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ग़ज़ल (एक प्रयास) // रवि प्रकाश

बहर-SISS SISS SISS SISS

पंथ का आलोक हो गंतव्य का आधार हो तुम।
श्वास का संगीत मधुमय चेतना का द्वार हो तुम।।
प्राण भरते हो हृदय की मौनधर्मी धड़कनों में,
मोहता जो मन अहर्निश स्वप्न वो साकार हो तुम।
भोर की मृदु लालिमा की ओसकण से भेंट जैसे,
कुमुदिनी पे रीझते भ्रमरों का मंत्रोच्चार हो तुम।
मत्त पावस की झड़ी में हो शिखी के नृत्य निश्छल,
कोकिला की रागिनी के उल्लसित उद्गार हो तुम।
सांध्य वेला में हठीली दीपमाला से प्रकाशित,
घन तमस में कौमुदी का विश्व से अभिसार हो तुम।
झूलना,उल्लास,छप्पय,रूपमाला और गाथा,
द्रुतविलंबित,श्लोक मुझको गीत का उपहार हो तुम।
मैं अकिंचन सी किरण मन्वन्तरों से अप्रकाशित,
कोटि नक्षत्रों से दीपित व्योम का विस्तार हो तुम।
मैं तपन मरुथल की निर्मम तुम सुधा के स्रोत निर्मल,
मैं पिपासाकुल कपिंजल स्वाति की जलधार हो तुम।
-मौलिक एवं अप्रकाशित।।

Views: 447

Comment

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Comment by Ravi Prakash on May 5, 2016 at 9:53am
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।आपकी टिप्पणी से मन हर्षित हो गया। आशीर्वाद बनाये रखें।
Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 2:28pm

आदरणीय रवि प्रकाश जी वाह वाह कितनी सुन्‍दर ग़ज़ल कही है आपने गजल के शिल्‍प पर शुद्ध हिन्‍दी भाषा में कथ्‍य प्रस्‍तुत किया है । अदभुत 

50 लोग पढ़ कर गये किन्‍तु किसी ने भी कोई टिप्‍पणी नहीं की आश्‍चर्य है ।

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना और भाव भी सहज संप्रेषित होते हुए ।  आपकी रचना बहुत पसंद आई बहुत बहुत धन्‍यवाद

गजल और गीत विधा पर इस मंच में कई लोग समान रूप से सक्रिय और सम्‍मनित रूप से स्‍वीकार्य है । उन आदरणीय हस्‍ताक्षरों की प्रतिक्रिया की हमें भी प्रतीक्षा रहेगी  । 

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