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लघुकथा : बहन जी (गणेश जी बागी)

"अरे वाह ! कुछ ही दिनों में ये मोबाइल, ये नया टैब ! क्या बात है मैडम जी, कोई लाटरी लग गई है क्या ?", राधिका ने अपनी रूम-मेट आयशा को छेड़ते हुए कहा | 
"नहीं रे, ये दोनो गैजेट तो प्रशांत ने ग़िफ़्ट किये हैं |"
"देख आयशा, मैने तुझे पहले भी आगाह किया था.. आज फिर कह रही हूँ, ये प्रशांत और उसके दोस्तों से संभल के रह... वे लोग मुझे ठीक...."
"तू न... जिंदगी भर बहन जी ही बनी रहेगी..  अरे यार, बड़े शहर के इस नामी कॉलेज में पढ़ने आई है, समय के साथ जीना तो सीख..", राधिका की बात बीच में ही काटती आयशा बोल पड़ी | 
"खैर, तुझे जो अच्छा लगे कर, पर मैं इतना ज़रूर जानती हूँ कि बगैर स्वार्थ के कोई किसी को ऐसे गिफ्ट नही देता.."

प्रशांत की बर्थडे पार्टी से आयशा अबतक नहीं लौटी थी । रात के साढ़े बारह बज चुके थे । कि, दरवाजे पर दस्तक हुई । राधिका ने दरवाजा खोला तो आयशा ही थी, बदहवास !.. लगातार रोती हुई । 
राधिका को समझते देर न लगी, "..तो प्रशांत और उसके दोस्तों ने आज ग़िफ़्ट की कीमत वसूल ....."

आयशा की हिंचकियाँ अबतक बेतहाशा बढ़ गयी थीं |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 8:27pm

आदरणीय सिज़्जु भाई, लघुकथा की आत्मा से साक्षात्कार कर आपने टिप्पणी लिखी है, आपकी टिप्पणी उच्च लेखन हेतु प्रेरित करती है, बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 8:24pm

उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार भाई बृजेश जी | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 8:23pm

आदरणीया प्राची जी, आपसे प्राप्त सराहना सदैव अच्छा लिखने हेतु प्रेरित करती है, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु हृदय से आभार प्रेषित है | 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 2, 2013 at 10:13am

भारत की हवा यूरोप अमेरिका की नकल के चक्कर में प्रदूषित हो चुकी है खासकर महानगरों की । जिसका ब्वाय फ्रेंड न हो तो उस लड़की का सहेलियाँ ही मजाक उड़ाती है।  कुछ अच्छे संस्कार थे तो आयशा रोती हुई आई वरना वह दूसरे दिन कालेज में खिलखिलाती ।

बधाई गणेश जी आधुनिक सभ्यता की कड़वी सच्चाई बखान करने के लिये । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 9:47am

अनुज अरुन अनंत जी, आपकी टिप्पणी सदैव उत्साहवर्धन करती है, हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 9:45am

आदरणीय विजय मिश्र जी, आपकी टिप्पणी सदैव स्तरीय लेखन हेतु प्रेरित करती है, बहुत बहुत आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 9:42am

आभार आदरणीय रविकर जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 9:40am

लघुकथा की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय संदीप पटेल जी | 

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 2, 2013 at 9:39am

वर्तमान का अनावृत अक्स प्रतिबिम्बित करता एक आईना ही है आ बागी भाई आपकी यह लघुकथा....

सादर बधाई स्वीकारे संदेश देती संवेदनशील कथा के लिए....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 9:37am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी बातों से सहमत हूँ, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धित करती है बहुत बहुत आभार | 

कृपया ध्यान दे...

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