आयशा की हिंचकियाँ अबतक बेतहाशा बढ़ गयी थीं |
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरणीय सिज़्जु भाई, लघुकथा की आत्मा से साक्षात्कार कर आपने टिप्पणी लिखी है, आपकी टिप्पणी उच्च लेखन हेतु प्रेरित करती है, बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे |
उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार भाई बृजेश जी |
आदरणीया प्राची जी, आपसे प्राप्त सराहना सदैव अच्छा लिखने हेतु प्रेरित करती है, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु हृदय से आभार प्रेषित है |
भारत की हवा यूरोप अमेरिका की नकल के चक्कर में प्रदूषित हो चुकी है खासकर महानगरों की । जिसका ब्वाय फ्रेंड न हो तो उस लड़की का सहेलियाँ ही मजाक उड़ाती है। कुछ अच्छे संस्कार थे तो आयशा रोती हुई आई वरना वह दूसरे दिन कालेज में खिलखिलाती ।
बधाई गणेश जी आधुनिक सभ्यता की कड़वी सच्चाई बखान करने के लिये ।
अनुज अरुन अनंत जी, आपकी टिप्पणी सदैव उत्साहवर्धन करती है, हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ |
आदरणीय विजय मिश्र जी, आपकी टिप्पणी सदैव स्तरीय लेखन हेतु प्रेरित करती है, बहुत बहुत आभार |
आभार आदरणीय रविकर जी |
लघुकथा की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय संदीप पटेल जी |
वर्तमान का अनावृत अक्स प्रतिबिम्बित करता एक आईना ही है आ बागी भाई आपकी यह लघुकथा....
सादर बधाई स्वीकारे संदेश देती संवेदनशील कथा के लिए....
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी बातों से सहमत हूँ, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धित करती है बहुत बहुत आभार |
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