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आदरणीया , पूनम जी , मतले के दोनो मिसरों के सिवाय अगर अन्य शेरों मे रदीफ की आखरी मात्रा दोनो मिसरों मे आये तो उसे दोष माना जाता है !! लगता है यही , आपने रदीफ लिया है , वार , धार पार आदि काफिया है , यानी हर्फे कवाफी आर आ रहा है !! अब बाक़ी शेरों मे या तो आप मिसराये सानी मे काफिया रदीफ का बन्धन निभायेंगे या दोनो मिसरों मे निभा कर हुस्ने मतला जैसे शेर कहेंगे !! मिसराये उला मे ( पहली लाइन ) के अंत मे केवल ई की मात्रा अंत मे नही ला सकते ,तकाबुले रदीफ दोष की स्थिति आती है ! हो सके तो पूरा काफिया रदीफ मिलायें या अंत मे ई की मात्रा न आने दें , क्यों कि आप रदीफ लगता है यही चुने है ! जिसके अंत मे ई की मात्रा है !!!
क्या पता आपको समझाने मे सफल हुआ या नही , पर इससे ज्यादा मै नही जानता !!!! सादर !!!
आदरणीया , मतला अब सही बह्र में है , बधाई !!!
तकाबुले रदीफ दोष अभी भी है ,
मौत का मंजर कहीं रस्ते न आ जाए कहीं
देखकर तैयारियाँ खूँखार लगता है यही
आँख नम है कोर पर कैसी उदासी झाँकती
आँसुओं में बह गया दीदार लगता है यही
शब्दों के क्रम या शब्द बदल कर बोल्ड लेटर मे लिखे जगहों से ई की मात्रा बदल दें , ठीक हो जायेगा !!
बहुत सुंदर.
सुन्दर प्रयास है
हार्दिक शुभकामनाएं
आँख नम है कोर पर कैसी उदासी झाँकती
सावनों में घुल गई है खार लगता है यही... बढ़िया है बधाई आपको
आदरणीया आपने मतले में ही बहर का निर्वाह नहीं किया है, मतला ही बेबहर हो रहा है साथ ही साथ अंतिम शेर में तकाबुले रदीफ़ का भी दोष है कृपया देख लें. ग़ज़ल पर आपका प्रयास अच्छा है सही दिशा में है सतत प्रयासरत रहें, इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.
ग़ज़ल कहने का अच्छा प्रयास हुआ है. आपको हार्दिक बधाई!
बहर के अनुसार ही शब्दों को व्यवस्थित करने का प्रयास करें.
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