2122 1212 22
ऐसे कैसे कोई मरा होगा
कुछ तो उसने कभी कहा होगा
जब भी देखा जो आइना उसने
खुद से कह कर वो थक गया होगा
कितनी रातें गुजार दी होंगी
जाने कब तक वो जागता होगा
आँसू भी जब नहीं रहे साथी
मौत का साथ चुन लिया होगा
कितनी हैरत में जिन्दगी होगी
जब किसी ने नहीं सुना होगा
ख़ाक उड़ती है अब हवा में क्यों
जब कि घर लापता हुआ होगा
रूहे तामीर आज रोती है
जिसका कोई न अब पता होगा
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on April 25, 2015 at 9:55am —
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मैं होली कैसे खेलूँ रे
साँवरिया तोरे संग
बादल अपनी पिचकारी से
रंग भंग कर जाते हैं
रखा गुलाल धुंध उड़ती है
राग जंग कर जाते हैं
कोई रोको इस धरती की
हरियाली हो गई तंग
मैं होली कैसे .............. ।
सूरज ने आँखें ना खोलीं
सिमटा उसका ताप
तारों की झिलमिल रंगोली
गायब अपने आप
कहीं सिमट बैठे हैं सारे
रंग बिरंगे रंग
मैं होली कैसे खेलूँ रे
साँवरिया तोरे संग ।
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on March 3, 2015 at 11:30am —
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2122 2122. 212
बात आ ना जाए अपने होठ पर
देखिए पीछे पड़ा सारा शहर
मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर
देखो कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर
हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम
वक्त थम जाएगा हमको देखकर
रात गहरी पहले तो आती ही है
पर पलट करती है ऐलाने- सहर
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on November 24, 2014 at 2:00pm —
17 Comments
2122 2212 22
फिर अमावस की रात आनी है
हमने भी पर लड़ने की ठानी है
है अँधेरा औ चाँद खोया फिर
ये तो पहचानी इक कहानी है
रात आएगी जग छुपा लेगी
धरती दीपक से जगमगानी है
ऐ खुदा तुमने तो सजा दी थी
प्रेम की ये भी इक निशानी है
गम के भीतर ही सुख छुपा होगा
बात ये भी तो जानी मानी है
बीज सूरज के आओ बो दें फिर
खेती आतिश की लहलहानी है
चल अमावस को फिर बना पूनम
ये तो आदत तेरी पुरानी है ।…
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Added by Poonam Shukla on October 16, 2014 at 10:00am —
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2122. 1221. 2212
तेरी यादों में ज़ालिम गुजर जाएगी
जिन्दगी अब न जाने किधर जाएगी
इक नजर देखिए बस जरा सा हमें
आपको देखकर ये सँवर जाएगी
रोशनी अब ये पा लेगी लगता तो है
चीर देगी अँधेरा जिधर जाएगी
आँसुओं की लड़ी बह रही थी कहीं
बह के जानूँ न वो किस नहर जाएगी
कुछ कहेंगे नहीं फिर भी हम तो सनम
बात अपनी दिलों तक मगर जाएगी
पूनम शुक्ला ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on September 8, 2014 at 8:24pm —
8 Comments
२१२२ / २१२२ / २१२२
दूर से तो गीत वो गाने लगे थे
पास आते ही क्यों शरमाने लगे थे
मेरे दिल में बस गए थे वो उसी दिन
जब से मेरा दिल वो बहलाने लगे थे
दूर थे पर पास ही थीं उनकी यादें
हमने कहा कब आप अनजाने लगे थे
धड़कनों नें खुद ही घुल मिल बात कर ली
तेरे तरन्नुम सारे पहचाने लगे थे
हम हैं तुममें तुम हो हम में अब ये जाना
पर नजारे कब से समझाने लगे थे
मौलिक एवं अप्रकाशित
पूनम शुक्ला
Added by Poonam Shukla on May 7, 2014 at 12:17pm —
10 Comments
2122 1222 2222
आप बस रोज यूँ मिलते तो अच्छा था
दर्द दिल के सभी टलते तो अच्छा था
काट डालीं कतारें तुमने पेड़ों की
पेड़ ठंढ़ी हवा झलते तो अच्छा था
झाँकते क्यों हैं पत्तों से अब अंगारे
शाख पर फूल ही खिलते तो अच्छा था
आग में क्यों यूँ जल जाते हैं परवाने
उनके मद लोभ ही जलते तो अच्छा था
अब तो तौकीर भी दौलत से मिलती है
सबके सत्कर्म ही फलते तो अच्छा था
हाँ सज़ावार को मिलती है अय्याशी
वो तो बस हाथ ही मलते तो…
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Added by Poonam Shukla on March 24, 2014 at 4:52pm —
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2122. 1221. 2212
जा चुकी यामिनी मुश्तहर कीजिए
हो सके अब तो थोड़ा सहर कीजिए
भेज दें गंध जो भी हो आकाश में
गुलशनों को कहीं तो खबर कीजिए
हर तरफ आग ही आग जलती तो है
तान सीना उसे बेअसर कीजिए
झूठ की आज चारों तरफ जीत है
सत्यता की कहानी अमर कीजिए
जुल्म की रात हरदम डराती हमें
जालिमों का खुलासा मगर कीजिए
तीरगी घेर ले गर कभी राह में.
अश्क से फिर न दामन यूँ तर कीजिए.
रेत सी जिन्दगी हाथ आती…
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Added by Poonam Shukla on February 27, 2014 at 12:05pm —
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2122. 2122 2
कहनी क्या थी बात मत पूछो
कब ढ़लेगी रात मत पूछो
जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो
थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो
बैठ हँसते हर तरफ जाबिर
देश के हालात मत पूछो
देखना तासीर भी उनकी
आदमी की जात मत पूछो
जौफ़ ही है हर तरफ बरहम
रंग हैं क्यों सात मत पूछो
है यहाँ हर राह सरगश्ता
क्यों नहीं प्रभात मत पूछो
तासीर- गुण ,प्रभाव
जाबिर -…
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Added by Poonam Shukla on February 14, 2014 at 10:00am —
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1222. 1222
दिखी अबकी सबा उसकी
कहीं गुम थी सदा उसकी
ठिकाना ढ़ूँढ़ते थे हम
बताने को ज़फा उसकी
लगा वो अब तलक अबतर
न देखी थी सफ़ा उसकी
कहाँ था आज तक अनवर
छुपी क्यों थी वफा़ उसकी
हमें मालूम हो कैसे
वही जाने रज़ा उसकी
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on January 22, 2014 at 4:01pm —
6 Comments
2122. 1212. 22
जाने क्या बात है हवाओं में
मीठी मिश्री घुली सदाओं में
ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं
चाँदनी खोजतीं खलाओं में
शबनमी रात ने कहा कुछ है
कुछ नई बात है सबाओं में
रात का है असर अभी ऐसा
जामुनी रंग है अदाओं में
रोशनी छीन ले जो वो मेरी
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में
जिन्दगी आज सोचती है ये
जादुई बात थी सजाओं में
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on November 13, 2013 at 10:02am —
12 Comments
2122. 1212. 22
जाने क्या बात है हवाओं में
मीठी मिश्री घुली सदाओं में
ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं
चाँदनी खोजतीं खलाओं में
शबनमी रात ने कहा कुछ है
कुछ नई बात है सबाओं में
रात का है असर अभी ऐसा
जामुनी रंग है अदाओं में
रोशनी छीन ले जो वो मेरी
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में
जिन्दगी आज सोचती है ये
जादुई बात थी सजाओं में
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on November 12, 2013 at 9:37am —
2 Comments
2212 . 2121. 212
जीवन की ऐसी किताब देखिए
काँटों में खिलता गुलाब देखिए
रोती ज़मी आसमान रो रहा
हँसता रुदन ये जनाब देखिए
सोई सबा पर न सोई ये रज़ा
जलता हुआ आफताब देखिए
जन्नत हुई तिश्नगी है इस कदर
मालिक दिलों के हुबाब देखिए
कीमत हँसी की चुकाई भी तो क्या
हँसती फिज़ा का जवाब देखिए
आँगन मेरा रोशनी से भर गया
ऐसा मेरा माहताब देखिए
दीवानगी घेरती है इस कदर
निखरा है ऐसा शबाब…
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Added by Poonam Shukla on November 11, 2013 at 2:00pm —
16 Comments
1222. 1222
सबा हाजिर अगर कर दूँ
कहानी इक अमर कर दूँ
अँधेरा घेरता फिर से
सितारों को खबर कर दूँ
हवा थोड़ी तुफानी है
इसे मैं बेअसर कर दूँ
कलम की रोशनाई से
फलक रंगीं अगर कर दूँ
ख़ला की हिकमती कैसी
अगर थोड़ी सहर कर दूँ
जरा सा वक्त तुम दे दो
जहन्नुम को न घर कर दूँ
चलूँगी राह जब अपनी
समुन्दर को डगर कर दूँ
हिकमती - उपाय
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on November 8, 2013 at 3:20pm —
17 Comments
2222. 222
बजती क्यों झंकारें हैं
जब सजती तलवारें हैं
मुँह पर ताले ऐसे क्यों
अब उठती ललकारें हैं
आँखों में देखो पानी
उफ इतनी मनुहारें हैं
कब बदलेगी ये झुग्गी
हाँ बदली सरकारें हैं
काँटे ही काँटे हैं बस
राहों में दीवारें हैं
बहना इतना मुश्किल क्यों
दिखती बस मझधारें हैं ।
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on November 7, 2013 at 10:30am —
12 Comments
1222. 1222. 122
कहाँ है आज मेरा घर कहाँ है
नहीं मिलती कहीं चादर कहाँ है
नमी है आँख में नींदें उड़ी हैं
नहीं मालूम अब बिस्तर कहाँ है
शगूफे इस तरह मुरझा रहे हैं
खला को नाप दे मिस्तर कहाँ है
छुपाएँ किस तरह अपने बदन को
कहीं मिलता नहीं अस्तर कहाँ है
नहीं ये घर नहीं मेरा तभी वो
अँधेरा चीर दे नश्तर कहाँ है
नदी सी दौड़ती मैं तो चली थी
मुझे रोके जो वो पत्थर कहाँ है
समा जाऊँ कहीं बोलो कहाँ…
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Added by Poonam Shukla on October 18, 2013 at 9:37am —
8 Comments
2222. 2222. 2
इतनी फैली है गीबत क्योंकर
शफ़्क़त आनें में शिद्दत क्योंकर
आबे दरिया सा रास्ता सबका
रुक ही जाती है बहजत क्योंकर
ताबो ताकत बैठी रोती है
इतनी बरकत में दौलत क्योंकर
आसाइश इतनी दरहम बरहम
हँसती जाती है दहशत क्योंकर
कितना बेकस है इंसा बेबस
तब भी शातिर ही हिकमत क्योंकर
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
गीबत - बदबू
बहजत - खुशी
ताबो ताकत - योग्यता
आसाइश - सुख समृद्धि
दरहम…
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Added by Poonam Shukla on October 15, 2013 at 11:00am —
9 Comments
2122. 1212. 22
कब वो खाली शराब पीता है
हुस्ने ताजा शबाब पीता है
कैसे खिलती वहाँ कली अबतर
वो तो खूने हिजाब पीता है
इतनी भोली खला कि क्या जाने
फिर वो अर्के गुलाब पीता है
ऐसी तदबीर जानता है वो
दिल में उठते हुबाब पीता है
जाने तसतीर भी नहीं उसकी
तब भी सारे खिताब पीता है
ऐसी तौक़ीर दूरतक जानिब
सबकी खाली किताब पीता है
पीना फितरत बना लिया उसने
बैठे ही लाजवाब पीता है
हिजाब -…
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Added by Poonam Shukla on October 13, 2013 at 12:00pm —
9 Comments
2122 1212 22
खत्म होती नहीं सजा कहना
बेरहम क्यों हुई रज़ा कहना
आशियाना सजा लिया हमने
तीरगी घेरती वज़ा कहना
आज फिर याद खूब आती है
मोतबर दर्द को मज़ा कहना
चाह कर भी सजा नहीं होगी
आज तू दर्द को ज़जा कहना
जान पर खेल कर कभी अपनी
जिन्दगी बाँटना क़जा़ कहना ।
दिन ब दिन बदलियाँ हटेंगी भी
जिन्दगी को न बेमज़ा कहना
कज़ा- ईश्वरीय आदेश
रज़ा - इच्छा
ज़जा - फल
मोतबर=जिसका एतबार किया…
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Added by Poonam Shukla on October 10, 2013 at 10:34am —
12 Comments
2222. 2222
हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है
तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है
इक लय में गाते जब दोनों
हर इक आखर तर होता है
होती खाली तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है
बन जाता है जो रेतीला
वो भी तो पत्थर होता है
रुक जाते हैं चलते रेले
देखा तेरा दर होता है
तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Poonam Shukla on October 7, 2013 at 8:30pm —
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