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ग़ज़ल - हँसती फ़िजा का जवाब देखिए - पूनम शुक्ला

2212 . 2121. 212


जीवन की ऐसी किताब देखिए
काँटों में खिलता गुलाब देखिए

रोती ज़मी आसमान रो रहा
हँसता रुदन ये जनाब देखिए

सोई सबा पर न सोई ये रज़ा
जलता हुआ आफताब देखिए

जन्नत हुई तिश्नगी है इस कदर
मालिक दिलों के हुबाब देखिए

कीमत हँसी की चुकाई भी तो क्या
हँसती फिज़ा का जवाब देखिए

आँगन मेरा रोशनी से भर गया
ऐसा मेरा माहताब देखिए

दीवानगी घेरती है इस कदर
निखरा है ऐसा शबाब देखिए

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 4:48am

इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई आ0 पूनम जी...

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 13, 2013 at 10:10pm

सुंदर गजल के लिए बधाई स्वीकार करें .... सादर ॥ आमोद 

Comment by Poonam Shukla on November 13, 2013 at 7:03pm
सुधार किया है ,अभी भी कुछ कमी हो तो बताएँ ।
Comment by अरुन 'अनन्त' on November 13, 2013 at 3:34pm

आदरणीया अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया राजेश माँ जी से सहमत हूँ उनके कहे का सज्ञान करें. प्रयास हेतु बधाई

Comment by vijay nikore on November 13, 2013 at 5:03am

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 12, 2013 at 11:51pm

भाव अच्छे लगे, आदरणीया हार्दिक बधाई।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 12, 2013 at 4:51pm

आदरणीय पूनम जी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by Poonam Shukla on November 12, 2013 at 9:28am
आप सभी के स्नेह व सहयोग के लिए मैं धन्यवाद देती हूँ । गल्तियाँ अभी सुधारती हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 12, 2013 at 9:03am

सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2013 at 9:01am

हँसती रुदन ये जनाब देखिए----पूनम जी रुदन =पुर्लिंग है अतः हँसता रुदन कर सकती हैं 
सोई सबा पर न सोए ये रज़ा----रज़ा स्त्रीलिंग है दूसरे ए और ये साथ मिलकर बहर गड़बड़ कर रहे हैं --इस मिसरे को जांच लें 

बाकी सभी अशआर सुन्दर हैं बढ़िया ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें 

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