2122. 2122 2
कहनी क्या थी बात मत पूछो
कब ढ़लेगी रात मत पूछो
जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो
थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो
बैठ हँसते हर तरफ जाबिर
देश के हालात मत पूछो
देखना तासीर भी उनकी
आदमी की जात मत पूछो
जौफ़ ही है हर तरफ बरहम
रंग हैं क्यों सात मत पूछो
है यहाँ हर राह सरगश्ता
क्यों नहीं प्रभात मत पूछो
तासीर- गुण ,प्रभाव
जाबिर - अन्यायी,ज़ालिम
जौफ़ - खोखलापन
बरहम - कुपित
सरगश्ता - भटका हुआ
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
छोटी बह्र पर सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आ० पूनम जी
जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो..........ये शेर बहुत पसंद आया
मकते के शेर में "क्यों नहीं प्रभात मत पूछो" तक्तीअ दुबारा कर लें
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई
सुन्दर .........................अति सुन्दर............
आदरणीया पूनम जी ..उर्दू के शब्दों के आत्मसात से लिखी गयी बेहतरीन ग़ज़ल ..सादर
आदरणीया पूनम जी , गज़ल बहुत सुन्दर कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
बहुत ही प्यारी ग़ज़ल आदरणीया हार्दिक बधाई आपको
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । |
बहुत सुन्दर गज़ल .. बधाई पूनम जी
जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो
थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो
आदरणीया पूनम जी कोमल शब्दों मे बहुत अच्छी गज़ल कही अपने .... डेरों बधाइयाँ।
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