2122 2212 22
फिर अमावस की रात आनी है
हमने भी पर लड़ने की ठानी है
है अँधेरा औ चाँद खोया फिर
ये तो पहचानी इक कहानी है
रात आएगी जग छुपा लेगी
धरती दीपक से जगमगानी है
ऐ खुदा तुमने तो सजा दी थी
प्रेम की ये भी इक निशानी है
गम के भीतर ही सुख छुपा होगा
बात ये भी तो जानी मानी है
बीज सूरज के आओ बो दें फिर
खेती आतिश की लहलहानी है
चल अमावस को फिर बना पूनम
ये तो आदत तेरी पुरानी है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
पूनम शुक्ला
Comment
अच्छी प्रस्तुती हार्दिक बधाई
" बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । " |
बीज सूरज के आओ बो दें फिर
खेती आतिश की लहलहानी है......बहुत खूब. इस शेर पर विशेष बधाई आपको , आदरणीया पूनम जी
बीज सूरज के आओ बो दें फिर
खेती आतिश की लहलहानी है
चल अमावस को फिर बना पूनम
ये तो आदत तेरी पुरानी है ========= अच्छी गजल i
सुन्दर गजल के लिए सादर बधाई!
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