2222. 2222
हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है
तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है
इक लय में गाते जब दोनों
हर इक आखर तर होता है
होती खाली तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है
बन जाता है जो रेतीला
वो भी तो पत्थर होता है
रुक जाते हैं चलते रेले
देखा तेरा दर होता है
तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
पूनमजी, आपकी ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद. ग़ज़ल पर देर से आ पा रहा हूँ. लेकिन मन खुश हो गया.
आपने फेलुन फेलुन.. फा का वज़्न लिया है. परिपाटियों के अनुसार ग़ाफ़ की संख्या विषम यानि फूट की रखी जाती है.
बधाई
बहुत शानदार ग़ज़ल कही है
ढेरो दाद
हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है .... अच्छा मतला हुआ है
बन जाता है जो रेतीला
वो भी तो पत्थर होता है........ बहुत कुछ कहता हुआ शेर है ,,, बहुत खूब
रुक जाते हैं चलते रेले
देखा तेरा दर होता है .......... बहुत अच्छे से निभाया
तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है ........... लाजवाब ,,, कमाल का शेर
इक लय में गाते जब दोनों
हर इक आखर तर होता है..............बहुत सुन्दर शेर
हार्दिक शुभकामनाएं
आदरणीया पूनम जी ... कुछ मिसरे सचमुच आंदोलित कर रहे हैं ..! बढ़िया ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद :)
आदरणीया पूनम जी हार्दिक बधाई इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई हो आदरणीया पूनम जी.....
पूनम जी, सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
अ0 पूनम शुक्ल जी खूबसूरत गजल हुई है बहुत बधाई आपको ।
हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है
तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है
होती खाली तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है
पूनम जी, अच्छी गज़ल के लिए बहुत बधायी .....
छॊटी बह्र में कमाल की गज़ल कही है,,,,बधाई
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