For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - अँधेरा चीर दे नश्तर कहाँ है - पूनम शुक्ला

1222. 1222. 122

कहाँ है आज मेरा घर कहाँ है
नहीं मिलती कहीं चादर कहाँ है

नमी है आँख में नींदें उड़ी हैं
नहीं मालूम अब बिस्तर कहाँ है

शगूफे इस तरह मुरझा रहे हैं
खला को नाप दे मिस्तर कहाँ है

छुपाएँ किस तरह अपने बदन को
कहीं मिलता नहीं अस्तर कहाँ है

नहीं ये घर नहीं मेरा तभी वो
अँधेरा चीर दे नश्तर कहाँ है

नदी सी दौड़ती मैं तो चली थी
मुझे रोके जो वो पत्थर कहाँ है

समा जाऊँ कहीं बोलो कहाँ अब
मगर वो खौलता सागर कहाँ है

सदा आई नहीं तेरी अभी तक
सबा लाए अभी मज़हर कहाँ है


शगूफे - कलियाँ
मिस्तर - नापनी,स्केल
सबा - सुबह
मज़हर - नूर

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 490

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 4:48am

इस शानदार गज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आ0 पूनम जी...

Comment by वीनस केसरी on October 21, 2013 at 1:08am

आपकी रचनाशीलता और आपका समर्पण रंग ला रहा है

ढेरो बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 2:01pm

सुन्दर ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on October 18, 2013 at 11:20pm

सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

यदि दूसरों की रचनाओं को भी पढ़ें और उन पर अपने विचार रखें तो शायद अन्य लोग भी आपके ज्ञान से लाभान्वित हो सकें!

सादर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 18, 2013 at 8:35pm

ग़ज़ल अच्छी लगी आदरणीया पूनम शुक्ला जी । दाद कुबूल करें । 

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 18, 2013 at 5:58pm

अत्यन्त शानदार  ग़ज़ल है पूनम जी.... नदी सी दौड़ती मैं तो चली थी /मुझे रोके जो वो पत्थर कहाँ है .... ये शेर तो वाह वाह..... 

ग़ज़ल की रवानी के क्या कहने!!!

Comment by Abhinav Arun on October 18, 2013 at 3:00pm

नदी सी दौड़ती मैं तो चली थी
मुझे रोके जो वो पत्थर कहाँ है

समा जाऊँ कहीं बोलो कहाँ अब
मगर वो खौलता सागर कहाँ है..

सुन्दर ..सशक्त ..ग़ज़ल 

हार्दिक बधाई आ. पूनम जी  !!

Comment by शकील समर on October 18, 2013 at 2:28pm

इस भावपूर्ण गजल के लिए ढेरों बधाइयां स्वीकार करें आदरणीया Poonam Shukla जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service