कहते सब सरिता मुझे ,बढती हूँ निष्काम
जीवन के पथ हैं कठिन, चलते रहना काम
चलते रहना काम, नहीं रोके रुक पाती
शत्रु सामने देख , सहज दुर्गा बन जाती
मेरा शील स्वभाव , भाव हैं मुझमें बहते
मैं जीवन का स्रोत मुझे सब सरिता कहते //
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कुंती जी हार्दिक आभार
आदरणीया प्राची जी
मन प्रसन्न है आपका ,करती हूँ आभार
मार्गदर्शक बनी रहें , करती रहें सुधार
बहुत सुन्दर कुण्डलिया आ० सरिता जी,
अपना परिचय कहती, शब्द भाव शिल्प प्रवाह सभी मानकों को संतुष्ट करती निर्दोष कुण्डलिया प्रस्तुत की है आदरणीया.. मन प्रसन्न हो गया
हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुंदर परिचय.
आदरणीय लक्ष्मण जी
आभारी हूँ आपकी ,देना आशीर्वाद
सबकी स्नेहिल प्रीत से,रहूँ सदा आबाद
वाह वाह रविकर sir दिल की गहराइयों से नमन आपको कुण्डलिया में टिप्पिनी पाकर धन्य हुई
परिचय भाया आपको दिल से है आभार
शिष्या मुझको जानलो,नमन करो स्वीकार
सुन्दर परिचय-
आभार आद्रेया-
सरिता का उद्गम कहाँ, कहाँ नहीं चल जाय |
करे लोकहित अनवरत, बस्ती कई बसाय |
बस्ती कई बसाय, खेत उपजाऊ करती |
नाले मिलते आय, बहुत गन्दगी अखरती |
रखते गन्दी नियत, दुष्ट फैले हैं परित: |
सह सकती नहिं और, मिले सागर में सरिता-
ह्रदय तल से आभार
परिचय देने के लिये,भा गया है प्रतीक
गुरूदेव करती नमन,अनुमोदन भी स्टीक
सुन्दर परिचय आपका लगता अच्छा भाव
कुण्डलिया भी बन पड़ी, छोड़े नेक प्रभाव |------हार्दिक शुभकामनाए
अरुण शुक्रिया मार्गदर्शन एवं स्नेह बनाए रखें
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