माँ
गहरी सागर सी
ऊँची अनन्त सी
घुली पवन में
सुगंध सी
माँ!
हृदय तुम्हारा
कोमल फूलों सा
मिश्री सी वाणीं
लोरी, परियों की कहानी
माँ!
सुन्दर इतनी कि
अप्सराएँ शर्माएँ
आँचल में तुम्हारे
सागर ममता का
लहराये
महानता में ईश्वर भी
पीछे रह जाए
माँ!
स्पर्श में तुम्हारे
मिलता असीम सुख
हृदय से लग के
मिटता संताप, दुःख
माँ!
तुम मेरी शक्ति
आत्मविश्वास,
श्रोत प्रेरणा की
मेरी पथप्रदर्शक
माँ!
तुम हो मेरे लिए
शक्ति का वरदान
चरणों में तुम्हारे
बारम्बार प्रणाम
तुम ही तो हो
मेरी भगवान!
माँ!
तुम हो कितनी महान ||
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ० प्राची जी पूरी तरह से सहमत हूँ आप से | मार्गदर्शन के लिए आभार स्वीकारें
बहुत सुन्दर ह्रुदयस्पर्शी भाव आदरणीया मीना जी ...
माँ यही सब कुछ तो होती है, सबके लिए,जैसे आपने व्यक्त किया है.. तो इस कविता में निम्न कुछ परिवर्तन करके क्या माँ के एहसास की पवित्रता को सर्वव्यापक बना कर अभिव्यक्ति के विस्तार को बढ़ाया नहीं जा सकता...??? शायद सहमत हों
माँ!
एक शक्ति
आत्मविश्वास,
श्रोत प्रेरणा की
पथप्रदर्शक
माँ!
शक्ति का वरदान
चरणों में तुम्हारे
बारम्बार प्रणाम
तुम ही तो हो
भगवान!
माँ!
तुम हो कितनी महान ||
शुभेच्छाएं
हार्दिक आभार आ० कुंती जी
मीना जी , माँ को समर्पित बहुत सुंदर भाव संरचना.
आ० अन्नपूर्णा जी बहुत बहुत आभार आप का
आदरणीय अरुन शर्मा जी रचना सराहने के लिए बहुत बहुत आभार आप को
आ० बृजेश जी बहुत बहुत हार्दिक आभार आप का
हार्दिक आभार स्वीकारें आ० संदीप जी
आदरणीया मीना जी बहुत सुंदर रचना , बढाई आपको ।
माँ को दंडवत प्रणाम वंदन नमन बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया माँ वास्तव में ऐसी ही होती हैं. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
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