For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पराया धन (लघुकथा)

रमाकांत को पचास वर्ष की आयु में सात पुत्रियों के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ती हुयी थी | आज बेटे की छठी बड़े धूमधाम से मनाई जा रही थी | मित्रों और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था कहीं तिल रखने की भी जगाह नही थी घर में | महिलाएँ बधाई गीत गा रहीं थीं | रमाकांत सपत्नी खुशी से फूले नही समा रहे थे | बेटियाँ चुपचाप ये सब देख रहीं थीं | सबसे छोटी बेटी जो मात्र तीन वर्ष की थी अपनी सबसे बड़ी बहन की गोद में बैठी थी | सभी बहने देख रहीं थी कि कैसे सभी उसके नन्हें से भाई को गोद में ले कर स्नेह दिखा रहे थे | माँ पापा भी खुश थे | अचानक ही एक बहन बोली “दीदी हमारे जन्म पर भी ऐसे ही खुशी मनाई गई होगी ना ? बड़ी बहन उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरते हुए बोली “ना रे दादी कहती है की बाबू (नन्हा भाई) से ही इस घर का वंश चलेगा, हम सब अपने घर का वंश चलाएँगी |”
“तो क्या ये हमारा घर नही है ?” छोटी बहन ने उत्सुकता से पूछा |
“दादी कहती है कि हम सब परायाधन हैं, ये हमारा अपना घर नही है |” छोटी बहन उदास हो कर अपनी दादी को देखने लगती है जो पोते की बलईयाँ लेते नही थक रही है |

मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on October 17, 2013 at 6:59pm

सच कहा आप ने आ० प्राची जी ये लघुकथा आँखों देखी ही है  और कई गर्भ में ही मार दी गयीं | कई का जन्म इस लिए हो गया कि किसी बार किसी स्वामी जी ने तो किसी बार किसी स्वामी जी ने ये विश्वास दिलाया था कि अब की बेटा ही होगा  और हर बार जन्मती बेटियाँ रहीं | ऐसा नही कि बेटियों को रमाकांत जी प्यार नही करते पर उनके लालन पालन और शिक्षा पर असर पड़ रहा है  | एक मध्यमवर्गी परिवार में इतने बच्चों का होना .. आप सोच सकतीं हैं कि कैसा होगा दृश्य | 

मार्गदर्शन के लिए सादर आभार आदरणीया प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 1:00pm

आदरणीया मीना जी 

ये पराया धन का एहसास... ये शब्द ही इतना रूखा है... मन में शुष्कता बेरुखी भर देता है..

मासूम बच्चियाँ शुक्र है उन्हें किसी दानव नें मारा नहीं... वर्ना बेटे की चाहना वाले सात बेटियाँ जीवित रखें , ऐसी मानसिकता के समाज में यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं.  शुक्र है बच्चियों को बचपन में ही पराया रटा दिया गया... यदि न रटाया जाए तो एक दम परायेपन का दंश भी तो कष्टकर ही है... :)

कथ्य सामयिक है. पर यह लघुकथा आँखों देखी का बखान सी लग रही है..

शिल्प की दृष्टी से अभी काफी कसावट मांगती है यह लघुकथा.

शुभकामनाएं 

सादर.

Comment by Meena Pathak on October 15, 2013 at 12:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील जी 

Comment by Meena Pathak on October 15, 2013 at 12:11pm

आदरणीया महिमा जी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार स्वीकारें 

Comment by Meena Pathak on October 15, 2013 at 12:07pm

जी आ० कल्पना दी सहमत हूँ आप से पर अभी ये अशिक्षा कायम है समाज में | हार्दिक आभार लघुकथा सराहने के लिए | सादर 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 4:26am

सत्यता को दर्शाती इस सुंदर लघु कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीया मीना जी....

Comment by MAHIMA SHREE on October 14, 2013 at 9:52pm

आदरणीया  मीना जी ..भारतीय समाज में अभी तक  कई परिवार इस दकियानूसी सोच के दायरे में जी रहे हैं ... आपने बहुत ही खूबसूरती से अपने लघु कथा में  उसे बुना .. हार्दिक बधाई ...

Comment by कल्पना रामानी on October 13, 2013 at 10:45pm

अभी तक यह दक़ियानूसी सोच सिर्फ जहाँ अशिक्षा है, वहीं कायम है। नई पीढ़ी में काफी बदलाव आ चुका है, बल्कि बेटियों को अधिक महत्व और मान, प्यार दिया जाने लगा है। मार्मिक भावपूर्ण सुंदर लघुकथा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by Meena Pathak on October 13, 2013 at 7:35pm

जी आ०  अरुन जी .. अभी ये बीमारी पूरी तरह से ठीक नही हुई है | बहुत बहुत आभार स्वीकारें 

Comment by Meena Pathak on October 13, 2013 at 7:33pm

जी बिल्कुल सही कहा आप ने आदरणीय आशुतोष जी बहुत बहुत आभार आप का | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service