न ज़िंदगी को सजाना, गड़े खज़ाने से
नसीब ‘राख़’ है, साँसों के रूठ जाने से//१
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खड़े हैं क़ब्र के पत्थर-से लोग चौखट पर
जवान बेटी की इज्ज़त को यूँ गंवाने से//२
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पकड़ के पूँछ कलाई, पे बांध लेता मैं
जो मान जाता कभी वक़्त भी मनाने से//३
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न आफ़ताब को हो फ़िक्र तो मिटेगा क्यूँ
कोई न फ़र्क है जुगनूँ के दिल जलाने से//४
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सुना है अश्क़ दवाई से कम नहीं होता
तो छोड़ रात में पलकों को यूँ नहाने से //५
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तुझे है फ़िक्र कि कश्ती तेरी सलामत हो
मुझे मलाल किनारों के डूब जाने से//६
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लहू के खेल में फ़रमान कर दिया जारी
सजा-ए-मौत ग़रीबों को मुस्कुराने से//७
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जमीं पे छोड़ उसी माँ को उड़ गए हम भी
जो चहचहाते थे दाने को ढूंढ लाने से//८
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खरीद ‘नाथ’ न पाया वो नींद आँचल की
जो नींद आती थी ‘माँ’ तेरे गुनगुनाने से//९
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"मौलिक व अप्रकाशित"
वज्न : न-1/ज़िंदगी-212/को-1/सजाना-122/गड़े-12/खज़ाने-122/से-2 [1212-1122-1212-22]
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया coontee mukerji जी हार्दिक धन्यवाद......!!!!!!!
तुझे है फ़िक्र कि कश्ती तेरी सलामत हो
मुझे मलाल किनारों के डूब जाने से//६...............बहुत खूब.
आपका सदैव स्वागत है मित्र शुभकामनाएं आगे बढ़ते रहें ओ बी ओ परिवार आपके साथ है सदैव
जी .....'अनंत साहब'...बहुत बहुत शुक्रिया....मिल गया और मैंने पढ़ा भी...बाद में और ध्यान से पढ़ लूँगा......उम्मीद है...आईन्दा यह भूल नहीं होगी.......हार्दिक नमन !!!!!!!!!!
आदरणीय रामनाथ भाई जी यहीं पर ऊपर देखिये पाठशाला है वहां आप केवल तकाबुले रदीफ़ दोष के बारे में ही नहीं अपितु ग़ज़ल से सम्बंधित तमाम दोष और बारीकियों की जानकारी हासिल कर सकते हैं. यदि कोई समस्या हो तो निःसंकोच पूछ सकते हैं.
मेरा श्री अरुण शर्मा 'अनंत' साहब से विनम्र निवेदन है कि ''तकाबुले रदीफ़ का दोष'' के बारे में कुछ जानकारी दे ताकि यह गलती दोबारा न हो सकें....इस अभिनव कार्य के लिए आपका आजीवन आभारी रहूँगा..........नमन !!!!!
(उदहारण के तौर पर मेरे आशा'आर को लें..तो मुझे बहुत सुविधा होगी)
आदरणीय अरुण शर्मा 'अनंत' साहब, गणेश जी 'बाग़ी' साहब...हार्दिक प्रसन्नता हुई, आपने मेरी कमियों की तरफ इंगित किया..मुझे तो बहुत अच्छा लगता है..जब सीखने को मिलता है..और इस मंच का मेरे हृदय में अथाह प्रेम के साथ स्थान है...बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ...आपके सटीक और सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु......नमन !!
आदरणीय अरुण कुमार निगम साहब...आपका सुझाव मेरे सर-आँखों पर........आप सभी महानुभावों का हार्दिक आभार.....!!!!!
आदरणीय रामनाथ जी, गज़ल में भावों को सुंदरता से पिरोया है, आदरणीय गणेश जी और अरुण अनंत जी की प्रतिक्रियाओं पर गम्भीरता से विचार करें शिल्प भी उम्दा हो जायेगा.
पकड़ के पूँछ कलाई, पे बांध लेता मैं
जो मान जाता कभी वक़्त भी मनाने से//.......... बहुत ही सुंदर पंक्ति, बधाई आपको ।
जो टिप्पणीकर्ता शुद्ध पाठक हैं और ग़ज़ल शिल्प को नहीं जानते वो कुछ भी कहें कोई बात नहीं किन्तु जो मित्र ग़ज़ल के जानकार हैं और वो शिल्प को देखे बिना कोरी वाह वाही कर रहे हैं उनपर शक होता है कि वो रचना पढ़ते भी है या नहीं ।
प्रथम दृष्टि में ही रचना काफिया स्तर पर खारिज है फिर भी साथी गण ……………
क्या अच्छा होता कि आप गुणी जन प्रस्तुत रचना की कमियों को इंगित करते जिससे लेखक को फायदा मिलता जो मंच के उद्देश्यों के अनुरूप होता ।
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