For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अथ श्री मुर्गा-पुराण,,,

================

हमारॆ शिक्षा काल मॆं छात्रॊं की बड़ी व्यथा थी,

उन दिनॊं स्कूलॊं मॆं मुर्गा बनानॆ की प्रथा थी,

अध्यापक महॊदय कक्षा मॆं शान सॆ आतॆ थॆ,

और तुरंत छात्रॊं पर प्रश्नॊं कॆ तीर चलातॆ थॆ,

जब छात्रॊं सॆ प्रश्न का उत्तर नहीं बन पाता,

गुरूजी का मुख गॊभी-फूल जैसा खिल जाता,

कहतॆ सब कॆ सब कतार मॆं खड़ॆ हॊ जाऒ,

एक दम ही गधॆ हॊ चलॊ मुर्गा बन जाऒ,

हम ईमानदारी सॆ मुर्गा बन जाया करतॆ थॆ,

गुरूजी व्यंग्य-मुद्रा बस मुस्कुराया करतॆ थॆ,

मित्रॊ,मुर्गा बननॆ का रॊज कॊई विषय हॊता,

समय-निर्धारण तॊ बढ़तॆ क्रम मॆं तय हॊता,

एक दिन मैनॆ कहा गुरूजी,,,,,

हमारॆ माँ-बाप अपना पॆट काटकर पढ़ातॆ हैं,

और आप विद्यालय मॆं हमॆं मुर्गा बनातॆ हैं,

आज आपका पढ़ाया हुआ हर छात्र मुर्गा है,

अविष्कार कॆ रंग मंच का हर पात्र मुर्गा है,

कॊई दारू का मुर्गा कॊई दवाई का मुर्गा है,

कॊई बॆकारी और कॊई मँहगाई का मुर्गा है,

कॊई सियासती मुर्गा कॊई बगावती मुर्गा है,

कॊई भ्रष्टाचारी मुर्गा कॊई दुराचारी मुर्गा है,

कुछ राजनीतिक मुर्गॆ कुछ आर्थिक मुर्गॆ हैं,

कुछ सामाजिक मुर्गॆ हैं कुछ धार्मिक मुर्गॆ हैं,

कुछ आवासी मुर्गॆ हैं तॊ कुछ प्रवासी मुर्गॆ हैं,

अंध-विश्वासी मुर्गॆ हैं और सत्यानासी मुर्गॆ हैं,

अविष्कारॊं की मशीन मॆं सड़ॆ पुर्जॆ लगातॆ हैं,

आप दॆश कॆ भविष्य कॊ मुर्गा क्यॊं बनातॆ हैं,

गुरू जी नॆ हमारॆ इस प्रश्न का वज़न तॊला,

अपनॆं चश्मॆ कॊ ठीक किया और मुँह खॊला,

बॊलॆ बात तुम्हारी एक दम सीधी सटीक है,

मैं मुर्गा बनाता हूँ यॆ जागरण का प्रतीक है,

जरा सॊचॊ मुर्गा बिना वॆतन काम करता है,

रॊज सुबह सुबह दरवाजॆ दरवाजॆ फिरता है,

बिना भॆद-भाव कॆ यह लॊगॊं कॊ जगाता है,

बदलॆ मॆं किसी सॆ मज़दूरी नहीं मँगाता है,

जातिभॆद भाषाभॆद धर्मभॆद नहीं जानता है,

मुर्गा अपनॆ कर्म कॊ ही सर्वॊपरि मानता है,

समय कॆ साथ चलना समय सॆ जागना,

अपनॆ कर्म सॆ मुँह मॊड़ कर न भागना,

यह समय कॆ महत्व जानना सिखाता है,

अपनॆ पूर्वजॊं कॆ संस्कारॊं कॊ निभाता है,

यह मुर्गा अकॆला प्राणी है दुनियां मॆं जॊ,

समाज कॆ सॊय़ॆ हुयॆ लॊगॊं कॊ जगाता है,

जानता हूँ समाज कॊ जॊ भी जगाता है,

वह पूरी उम्र जीवित नहीं रह पाता है,

या तॊ कर्म-पालन सॆ रोक दिया जाता है,

या फ़िर तंदूर कॆ अंदर झॊंक दिया जाता है,

मगर फ़िर भी मैं अपना कर्म तॊ करूंगा,

बिना कियॆ भी तॊ कभी न कभी मरूँगा,

इसीलियॆ मैं दॆश-भक्त मुर्गॆ बना रहा हूँ,

शिक्षक हॊनॆ का पूरा फ़र्ज़ निभा रहा हूँ,

और जिस दिन मॆरॆ बनायॆ हुयॆ यॆ मुर्गॆ,

इस दॆश कॆ कॊनॆ-कॊनॆ मॆं बाँग लगायॆंगॆ,

मॆरा दावा है कि समूचॆ हिन्दुस्तान मॆं,

यॆ सवा सौ करॊड़ लॊगॊं कॆ मस्तक भी,

गर्व सॆ ऊँचॆ उठ जायॆंगॆ ॥गर्व सॆ ऊँचॆ उठ जायॆंगॆ ॥

कवि-’राज बुन्दॆली"

०८/१०/२०१३ मौलिक व अप्रकाशित,,,,

Views: 3092

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 18, 2013 at 1:34am

आदरणीय,, Abhinav Arun जी,,, रचना को आपका स्नेह मिला,,,,और मुझे हौसला मिला,,,आपका दिल से आभार,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 18, 2013 at 1:32am

आदरणीय,,,,सौरभ,,सर जी,,,ये स्नेह बनाये रखियेगा,,,,,प्रणाम,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 18, 2013 at 1:31am

भाई ,,,जितेन्द्र"गीत" जी दिल से आभार आपका,,,,,,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on October 17, 2013 at 5:51am

इसीलियॆ मैं दॆश-भक्त मुर्गॆ बना रहा हूँ,

शिक्षक हॊनॆ का पूरा फ़र्ज़ निभा रहा हूँ,

और जिस दिन मॆरॆ बनायॆ हुयॆ यॆ मुर्गॆ,

इस दॆश कॆ कॊनॆ-कॊनॆ मॆं बाँग लगायॆंगॆ,

मॆरा दावा है कि समूचॆ हिन्दुस्तान मॆं,

यॆ सवा सौ करॊड़ लॊगॊं कॆ मस्तक भी,

गर्व सॆ ऊँचॆ उठ जायॆंगॆ ॥गर्व सॆ ऊँचॆ उठ जायॆंगॆ ॥....बेहतरीन आ. बुन्देली जी ..अरसे बाद इस तेवर की ऐसी सशक्त रचना पढ़ी है...इस तेवर और सामाजिक सरोकारों वाली आपकी कलम को नमन वंदन है ,साधुवाद !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 1:00am

भाईजी..  वाकई मजा आगया.. :-)))

शुभ-शुभ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 17, 2013 at 12:59am

बहुत खूब..बहुत शानदार रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय कवि राज जी

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 17, 2013 at 12:55am

आदरणीय,,,Saurabh Pandey ,,जी ,,,प्रणाम इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 12:38am

:-)))))))

बधाई...............

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 11, 2013 at 10:03pm

आदरणीया, MAHIMA SHREE जी,,,,इस हौसला-आफ़जाई हेतु,,,,,,,,,,बहुत बहुत आभार,,,,आपका

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 11, 2013 at 10:01pm

आदरणीया,,,गीतिका 'वेदिका' , जी,,,,,,आपके इस स्नेह को नमन,,, बहुत बहुत आभार,,,,,आपका इस हौसला-आफ़जाई हेतु,,,,,,,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service