पञ्च चामर छन्द = की विधा मॆं मॆरा
प्रथम प्रयास आप सबकॆ श्री चरणॊं मॆं
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रुदान्त कंठ मातृ-भूमि वॆदना पुकारती,
प्रकॊप-दग्ध दॆश-भक्ति भावना हुँकारती,
वही सपूत धन्य भारती पुकारती जिसॆ,
अखंड सत्य-धर्म साधना सँवारती जिसॆ,
करॊ पुनीत कर्म ज़िन्दगी सँवारतॆ चलॊ ॥
सुहासिनीं सुभाषिणीं सदा पुकारतॆ चलॊ ॥१॥
खड़ा रहा अड़ा रहा डरा नहीं कु-काल सॆ,
डटा रहा नहीं हटा हिमाद्रि तुंग भाल सॆ,
महाव्रती सपूत रक्त-सिन्धु मॆं नहा गया,
धरा प्रणम्य दॆश-भक्ति जाह्नवी बहा गया,
प्रचण्ड राष्ट्र-भक्ति चॆतना दुलारतॆ चलॊ ॥२॥
सुहासिनीं सुभाषिणीं सदा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उखाड़ दीं जड़ॆं गड़ी हुई अथाह भ्रान्ति की,
दहाड़ता चला गया जला मशाल क्रांति की,
अपूर्ण है स्वतंत्रता अपूर्ण शान्ति माल है,
अपूर्ण राष्ट्र संविधान जीर्ण राष्ट्र - भाल है,
प्रशस्त मार्ग क्रान्ति दूत हॊ हुँकारतॆ चलॊ ॥३॥
सुहासिनीं सुभाषिणीं सदा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अनादि धैर्य-वान हॊ अजॆय हॊ निशंक हॊ,
प्रचण्ड तप्त सूर्य हॊ पयॊधि हॊ मयंक हॊ,
जवान हिन्द दॆश कॆ किसान हिन्द दॆश कॆ,
अबॊध बाल बृद्ध भी महान हिन्द दॆश कॆ,
प्रदीप्य दीप्य स्नॆह आरती उतारतॆ चलॊ ॥४॥
सुहासिनीं सुभाषिणीं सदा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि - "राज बुन्दॆली"
१६/१२/२०१३
पूर्णत: अप्रकाशित एवं मौलिक रचना,,,
Comment
आदरणीय,,,,, Ashok Kumar Raktale जी भाई साहब तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं आपका,,,,,,
आदरणीय कवि - राज बुन्देली जी सादर, वाह ! बहुत सुन्दर जोश जगाते गीत के लिए ढेरों बधाई स्वीकारें. पञ्चचामर छंद की इस सुन्दर प्रस्तुति ने मन मोह लिया है. पुनः बधाई स्वीकारें.
आदरणीया,,,,Dr.Prachi Singh ,,,,,जी आपने रचना को समय दिय,,साथ मुक्त हृदय से प्रोत्साहन दिया,,,,,,आपका आभारी हूं,,,,,,
माँ भारती को समर्पित क्रांतिकारी ओजस्वी पंचचामर छंद आधारित गीत के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय राज बुन्देली जी
आद., गिरिराज भंडारीजी बहुत बहुत आभार आपका,,,,,आपने रचना को स्नेह दिया,,,,,,
आदरणीय,,,Saurabh Pandey,,, जी,,,,प्रथम तो प्रणाम आपको इस शुभाशीष के लिये,,,,,और विभिन्न छन्दों के शिल्प ज्ञान देने हेतु दिल से आभार आपका,,,,,आपके दिये ज्ञान से ही यह सम्भव हो सका है,,,,,,,,आदरणीय बहुत बहुत आभार आपका,,,,आगे भी मार्गदर्शन की याचना है,,,,,,,
आदरणीय राज बुन्देली भाई , छ्न्द ज्ञान मे शून्य हूँ पर पढ के बहुत आनन्द आया , कई बार पढा । आपको लाजवाब रचना के लिये तहे दिल से बधाई ॥
पंचचामर छंद में बद्ध इस ऊर्जस्वी रचना के लिए आपको हृदय से बधाई.
इसका विधान चूँकि इस मंच पर सर्वज्ञात हो गया है लेकिन उसे अंकित किया जाना समीचीन होता. मंच के ही एक वरिष्ठ सदस्य द्वारा इसके विधान को लेकर प्रश्न किया जाना इस तथ्य की पुष्टि करता है.
इस छंद का संक्षिप्त विधान यों होगा..
रगण जगण रगण जगण रगण + गुरु
यानि, १२१ २१२ १२१ २१२ १२१ +२ ..
एक रोचक तथ्य सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ, जो कि आदरणीय भाई राजबुन्देली के साथ कल रात बातचीत के क्रम में उन्हें स्पष्ट कर रहा था.
लघु गुरु (१ २) के आठ जोड़े को पंचचामर छंद कहते हैं.
इसीकी दूनी आवृति हो, यानि, लघु गुरु के सोलह जोड़े, तो वह आवृति दण्डक होगी और अनंगशेखर छंद कहलाती है. और, यदि इसकी आधी आवृति हो, यानि लघु गुरु के चार जोड़े, तो वह आवृति प्रमाणिका छंद कहलाती है .. ! .. :-)))
शुभ-शुभ
भाई राजेश मृदु,,,,जी बहुत बहुत आभार आपका,,,,,आपने रचना के लिये अपना बहु-मूल्य समय दिया,,स्नेह बनाये रखियेगा,,,धन्यवाद,,,,
जय हो आदरणीय, आपकी बारंबार जय हो, आनंददायक छंद, बहुत ही बढि़या रचना, सादर
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