क्यों बे साले तेरी ये मजाल ... दो टके का मजदूर हो के मुझसे ज़बान लड़ाता है !
साहेब, गरियाते काहे हैं, मजदूर तो आपौ हैं
क्या बकता है हरामखोsss
माई बाप ... पिछले हफ्ता एक मई का आपै तो कहे रहेन ,,, "हम सब मजदूर हैं"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सुन्दर कटाक्ष
बहुत सुन्दर लघुकथा .. बधाई आप को आदरणीय
वीनस भाई, बहुत ही बारीकी से आपने इस लघुकथा को सृजित किया है, बहुत सुन्दर,कम शब्दों में लघुकथा में अपने जान डाल दी है बहुत बहुत बधाई ।
वाह मासूमियत ने सच बुलवा दिया| खूब रही|
आपकी रचना लघुकथा मे पहली बार ही पढ़ रही हूँ, उस पे भी इतना खतरनाक पंच| भाई वाह!!
शुभकामनायें प्रेषित है !!
पहली बार आपकी लघु कथा पढ़ी ..वाकई गागर में सागर ..शेर की खाल ओढने वाले सियारों के गाल पर करारा तमाचा .सादर बधाई के साथ
आदरणीय वीनस भाई जी वाह आपके द्वारा रचित लघुकथा पहली बार पढ़ रहा हूँ बहुत ही सटीक सशक्त लघुकथा है थोड़े में ही बहुत कुछ दर्शा दिया है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आदरणीय वीनस भाई , !!! सशक्त लघु कथा !!!! लेबर यूनियन के नेताओं की सच्चाई के बहुत अच्छे से बयान किया है आपने !!!!
!!!!! आपको हार्दिक बधाई !!!!!
बहुत खूब !! :)
...अरे वाह ! अब ये रूप भी ? :-) क्या कहने ..सामयिक सशक्त सटीक ..बधाई और शुभकामनायें आ. श्री वीनस जी !!
सर आपने तो 44 शब्दों में 24 कैरेट की बात कह दी।
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