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सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा (हास्य ग़ज़ल "राज")

१२२२     १२२२      १२२२ १२

बहर---हजज मुसम्मन महजूफ

काफिया ---ना

रदीफ़ ----लगा

सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना   लगा

तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा

 

मिली धोबिन मुझे कल राह में पहने हुए

दुपट्टा पास से देखा मुझे अपना लगा

चुराई पैर की पायल मुझे  कुछ गम नहीं   

बड़े सम्मान से उसका मुझे झुकना लगा

 

चिढ़ाने के लिए  वो दे रहा था गालियाँ

मुझे तो राम का ही नाम सा जपना लगा

 

निकाला जेब से बटुवा किसी ने राह में  

बुरा फिर भीड़ से उसका मुझे पिटना लगा

 

गिराया टांग से मुझको किसी ने दौड़ में

 मुझे वो ख़्वाब मैं या नींद में गिरना लगा

 

दिया धोखा किसी ने राह मैं मुझको कभी

फ़कत दिन चार का मुझको बुरा सपना लगा

 

करूं क्या है बुरी पर ये मिरी आदत सही

भला हर ख़ार का मुझको सदा चुभना लगा   

 

छुपाना “राज” ये मुमकिन नहीं लगता मुझे

सुनाने से कहीं अच्छा मुझे लिखना लगा

************************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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Comment by rajesh kumari on October 16, 2013 at 10:33am

तहे दिल से शुक्रिया ब्रिजेश नीरज जी 

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 9:41am

अच्छी ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 4:10pm

तहे दिल से आभारी हूँ निलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2013 at 4:08pm

बहुत ख़ूब आदरणीय 


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Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 3:52pm

आदरणीया मंजरी जी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना से मेरे लेखन को सार्थकता मिली तहे दिल से आभारी हूँ सस्नेह  

Comment by mrs manjari pandey on October 15, 2013 at 1:21pm

    

   

चुराई पैर की पायल मुझे  कुछ गम नहीं   

बड़े सम्मान से उसका मुझे झुकना लगा

         

       पूरी ग़ज़ल सच्चाई और सरलता का बेहतर उदाहरण  प्रस्तुत करती है. यही बड़प्पन है.
      सोच ही व्यक्ति को ऊपर उठाती है. बहुत बहुत बधाई शुभकामनाएं आदरणीया .ईश्वर  आपकी
       सदाशयता को बनाये रखे ये दुआ भी

        

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 9:01am

आदरणीय सुशील  जोशी जी ग़ज़ल के शेरो पर आपकी समीक्षा से दिल खुश हो गया मेरी कलम को मानो नव ऊर्जा मिली हो ,तहे दिल से आभार आपका 


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Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 8:59am

प्रिय गीतिका वेदिका जी ग़ज़ल को आपकी सराहना मिली दिल खुश हो गया बहुत बहुत बहुत आभार 


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Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 8:58am

प्रिय महिमा श्री जी आपको ग़ज़ल में खयालात पसंद आये ,मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से शुक्रिया 


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Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 8:56am

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी लेखनी को नव ऊर्जा मिली ,सच ही है लेखक लोग बड़े सह्रदय होते हैं तभी तो दूसरों के दर्द को भी अपनी कलम से पन्नो पर लिखते हैं :)

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