For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बर्ताव
बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !
मुलायम नहीं..
गुदाज़ लोथड़ों में
लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत

तीन-तीन अंधे पहरों में से
कुछेक लम्हें ले लेने भर से
बात बनी ही कहाँ है कभी ?


चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक
बस चाहिये

आगे,
देर गयी रात 

उन तीन पहरों की कई-कई आँधियों के बाद 
लोथड़े की
तेज़धार चाकू की निर्दयी नोंक
खरबूजा-खरबूजा खेलती है
सुन्न पड़े के साथ
बेमतलब सी भोर होने तक.

*******************************

-सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

Views: 1151

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2013 at 9:55am

आदरणीय विजय जी, सकारात्मक अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद. मन प्रसन्न है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2013 at 9:53am

आदरणीया कल्पनाजी,

आपकी संवेदनशीलता इस कविता के सार्थक आयाम को स्पष्ट कर रही है. आपका अनुमोदन और बेहतर करने की प्रेरणा देता है.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2013 at 9:42am

आदरीय मुकेश जी, आपका हृदय प्रस्तुत कविता की भावदशा से उद्विग्न हुआ यह कविता की सार्थकता है.

सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2013 at 9:40am

आदरणीया प्राचीजी, आपको प्रस्तुत कविता की अंतर्दशा के भाव सार्थक लगे  मेरे रचनाकर्म को मिला अनुमोदन है. हार्दिक धन्यवाद.

Comment by vijay nikore on October 28, 2013 at 5:28am

पीड़ा की पृष्ठभूमि में मानवीय संबंधों से आई अन्तर्वेदना को आपने सुन्दर अभिव्यक्ति दी है।

हार्दिक बधाई।

Comment by कल्पना रामानी on October 19, 2013 at 6:38pm

इतने मर्मभेदी शब्द!!! पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो गए। क्या वो समाज इतना बेरहम वहशी होता है,  हम सबसे अलग? जिसके ऊपर बीतती है, उसकी आहें उन नृशंसों का वंश क्यों नहीं मिटा देतीं? 

Comment by Mukesh Kumar Sinha on October 18, 2013 at 2:22pm

uff............. mere pas shabd nahi hai !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 18, 2013 at 9:30am

आदरणीय सौरभ जी 

रोंगटे खड़े करती.. संवेदनाओं के अंतरतम तारों को झटके देकर सिहराती.. शाब्दिक अर्थों में बर्बरतापूर्ण बलात्कार को चिंघाड़ती दिल दहला देने वाली अभिव्यक्ति...

पर बलात्कार कब सिर्फ शारीरिक हुआ है? इस इंगित के माध्यम से मन, आत्मा, चिंतन, समझ, व्यक्तित्व तक का 'बर्ताव' द्वारा धज्जी धज्जी, चीथड़े चीथड़े उधेडा जाना जिस पीड़ा के साथ प्रस्तुत हुआ है.. वह सिहराने वाली है.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 4:53pm

आदरणीय अखिलेशजी,

यह घनी अँधेरी रात की वारदात इसी समाज का हिस्सा हैं. इसी समाज ऐसे अधिकांश लोग हैं जो ऐसा, वर्ना.. की शर्त पर सम्बन्ध जीते हैं. और हम निभाने को विवश हैं.

आप द्वारा इस रचना के मर्म को छूने का प्रयास मुझे नत कर रहा है. हार्दिक धन्यवाद. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 4:47pm

भाई चन्द्रशेखरजी, आपने जिस सहजता से प्रस्तुत रचना की सार्थक व्याख्या की है, वह आपके जागरुक कवि के साथ-साथ आपके सचेत पाठक से भी हमारा परिचय करा रहा है. आपकी रचनाधर्मिता, जिसका एक महत्त्वपूर्ण अंग वाचन भी है, को मैं हृदय से स्वीकार कर सम्मानित महसूस कर रहा हूँ.
बहुत-बहुत धन्यवाद, भाई
शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
10 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service