बर्ताव
बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !
मुलायम नहीं..
गुदाज़ लोथड़ों में
लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत
तीन-तीन अंधे पहरों में से
कुछेक लम्हें ले लेने भर से
बात बनी ही कहाँ है कभी ?
चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक
बस चाहिये
आगे,
देर गयी रात
उन तीन पहरों की कई-कई आँधियों के बाद
लोथड़े की
तेज़धार चाकू की निर्दयी नोंक
खरबूजा-खरबूजा खेलती है
सुन्न पड़े के साथ
बेमतलब सी भोर होने तक.
*******************************
-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय विजय जी, सकारात्मक अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद. मन प्रसन्न है.
सादर
आदरणीया कल्पनाजी,
आपकी संवेदनशीलता इस कविता के सार्थक आयाम को स्पष्ट कर रही है. आपका अनुमोदन और बेहतर करने की प्रेरणा देता है.
सादर
आदरीय मुकेश जी, आपका हृदय प्रस्तुत कविता की भावदशा से उद्विग्न हुआ यह कविता की सार्थकता है.
सादर धन्यवाद
आदरणीया प्राचीजी, आपको प्रस्तुत कविता की अंतर्दशा के भाव सार्थक लगे मेरे रचनाकर्म को मिला अनुमोदन है. हार्दिक धन्यवाद.
पीड़ा की पृष्ठभूमि में मानवीय संबंधों से आई अन्तर्वेदना को आपने सुन्दर अभिव्यक्ति दी है।
हार्दिक बधाई।
इतने मर्मभेदी शब्द!!! पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो गए। क्या वो समाज इतना बेरहम वहशी होता है, हम सबसे अलग? जिसके ऊपर बीतती है, उसकी आहें उन नृशंसों का वंश क्यों नहीं मिटा देतीं?
uff............. mere pas shabd nahi hai !!
आदरणीय सौरभ जी
रोंगटे खड़े करती.. संवेदनाओं के अंतरतम तारों को झटके देकर सिहराती.. शाब्दिक अर्थों में बर्बरतापूर्ण बलात्कार को चिंघाड़ती दिल दहला देने वाली अभिव्यक्ति...
पर बलात्कार कब सिर्फ शारीरिक हुआ है? इस इंगित के माध्यम से मन, आत्मा, चिंतन, समझ, व्यक्तित्व तक का 'बर्ताव' द्वारा धज्जी धज्जी, चीथड़े चीथड़े उधेडा जाना जिस पीड़ा के साथ प्रस्तुत हुआ है.. वह सिहराने वाली है.
सादर!
आदरणीय अखिलेशजी,
यह घनी अँधेरी रात की वारदात इसी समाज का हिस्सा हैं. इसी समाज ऐसे अधिकांश लोग हैं जो ऐसा, वर्ना.. की शर्त पर सम्बन्ध जीते हैं. और हम निभाने को विवश हैं.
आप द्वारा इस रचना के मर्म को छूने का प्रयास मुझे नत कर रहा है. हार्दिक धन्यवाद.
सादर
भाई चन्द्रशेखरजी, आपने जिस सहजता से प्रस्तुत रचना की सार्थक व्याख्या की है, वह आपके जागरुक कवि के साथ-साथ आपके सचेत पाठक से भी हमारा परिचय करा रहा है. आपकी रचनाधर्मिता, जिसका एक महत्त्वपूर्ण अंग वाचन भी है, को मैं हृदय से स्वीकार कर सम्मानित महसूस कर रहा हूँ.
बहुत-बहुत धन्यवाद, भाई
शुभ-शुभ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online