तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान
जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान
बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे
जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे
हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी
पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार! रचना को मिला आपका अनुमोदन वास्तव में महत्वपूर्ण है मेरे लिए!
पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी............ वाह वाह आ0 बृजेश भाई जी.... बहुत सुंदर..... कान्हा से प्रेम को दर्शाती एक बेहद ज़ोरदार प्रस्तुती..... बधाई आपको...
आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार!
री कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान
जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान
बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे.......बहुत सुंदर बृजेश जी.हर विधा में आपकी लेखनी माहिर है.
आदरणीय बृजेश जी,
इस आगे-पीछे को छोड़ हम वाह-वाही एक्सप्रेस पर चढ़ने-उतरने के मायावी खेल से बचे ही रहें :))) तो ही तथ्यपरक चर्चा की सार्थकता है.
हम सभी समवेत सीखते चलें... और नित रचनाकर्म करते रहें , यही सद्कामना है.
सादर.
आदरणीया प्राची जी, आपका बहुत आभार! फिर भी अभी खुद को आपसे पीछे ही मानता हूँ!
सादर!
//आपने अपनी कुण्डलियाँ की जो पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत की हैं वो भावाभिव्यक्ति में बहुत उच्च कोटि की हैं! काश! मैं भी कभी इस विधा में ऐसा कुछ कह पाऊं!//
ये क्या कह रहे हैं आ० बृजेश जी.... वैसे ही भावों को , वैसी ही गहनता के साथ अनुभव करके ..आपने वैसा ही लिखा हैं यहाँ ..... तभी तो हमने अपनी पंक्तियाँ सांझा कीं :)))))))
सादर!
आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार! आपकी विस्तृत टिप्पणी से बहुत सबल मिला! आपने अपनी कुण्डलियाँ की जो पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत की हैं वो भावाभिव्यक्ति में बहुत उच्च कोटि की हैं! काश! मैं भी कभी इस विधा में ऐसा कुछ कह पाऊं!
सादर!
आदरणीय सौरभ जी, आदरणीय बागी जी और आदरणीया राजेश कुमारी जी आप तीनों का बहुत बहुत आभर! आप लोगों की चर्चा से मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला! कुण्डलियाँ सीखने के प्रथम चरण में ही हूँ, आप लोगों का मार्गदर्शन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा!
सादर!
आदरणीय संदीप भाई और नीरज जी आपका हार्दिक आभार!
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