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कभी मुझसे जो उसने मोहब्बत की होती..

कभी मुझसे जो उसने मोहब्बत की होती..

उसकी आँखों में भी तो नमी होती ..
दिल टूटने  की आहट तो सुन लेता वो..
मेरे अश्कों की कुछ तो कद्र की होती...
कभी मुझसे जो उसने मोहब्बत की होती..

मेरे ज़र्द चहरे को देख रो देता..
खुश्क लबों को आस दे देता..
सूनी आँखों में किसी ख्वाब की झलक होती ..
उसने पल भर को जो आँखें मिलायी होतीं..
कभी मुझसे ....................

रेत का ढेर था वो लहरों में सिमट सा गया..
ख़ाक ख्वाबों के  मेरी रूह में  बिखेर गया..
मैं रो देती जो पलट के देख लेता वो..
काश..उसने इतनी तो तकलीफ की होती..
कभी मुझसे जो..

जो हुआ था नसीब दोनों का ..
दो कदम चल के साथ जो छूटा ..
कितने खुश होते जो वो दो कदम भी न चले होते..
दिल धड़कता ,रूह सुकूँ से होती.
न कभी मुझसे जो उसने मोहब्बत की होती..

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Comment

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Comment by Lata R.Ojha on January 12, 2011 at 6:29pm
धन्यवाद बबन जी .. :)
Comment by baban pandey on January 12, 2011 at 9:11am
पहचान करने की काव्यात्मक शैली ..सुंदर

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