२१२२ १२१२ २२
जिंदगी और इम्तिहान न ले
कुछ भी ले ले मेरा गुमान न ले
मशविरा है यही फकीरों का
यूं कभी दी हुई ज़बान न ले
राह आसां नहीं है उल्फत की
नन्हे से दिल मे आसमान न ले
चल खिलोनों से खेलते हैं हम
तू अभी हाथ में कृपान न ले
जो पड़ोसी है मुल्क उसको बता
असलहों से भरी दुकान न ले
खुल के जी खुद भी, सब को दे जीने
अपनी मुट्ठी मे तू जहान न ले
जिन की झोली में बस दुआयें हों
उन फकीरों से उन की आन न ले
मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉ आशुतोष मिश्र
Comment
आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल बन पड़ी है शेर नंबर 6 में तकाबुले रदीफ़ दोष है कृपया वज्न या बह्र इंगित कर दिया करें ताकि समझने में आसानी हो सके और प्रश्न चिन्ह न लगें. इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें.
बहुत सुंदर .
आदरणीय विजय सर ...आपके हौसला बढाते शब्द मुझे उर्जा मय बनाते हैं ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय अखिलेश जी बिलकुल हो सकता है ..नन्हे शब्द में भी मुझे मासूमियत का ही भाव लगता है ..मुझे भी ग़ज़ल की बारीकियों का ज्ञान नहीं है ग़ज़ल से मेरा जुडाव अभीचंद महीनात पहले का ही है ..इस प्रश्न का सटीक उत्तर विद्वत जनो से ही मिल सकेगा
आदरणीय सौरभ सर ..मैं आपसे सहमत हूँ आपकी सलाह पर मैं लगातार अमल भी करता रहा पर इस बार मुझसे अनजाने में पुनः भूल हुई ..इसके लिए क्षमा चाहता हूँ ..भविष्य में इसका ध्यान रखूंगा ताकि पुनरावृत्ति न हो ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय शिज्जू जी ..आपके प्रोत्शाहन से भरे शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर
आदरणीय गिरिराज जी ..हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय सौरभ जी ..प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर
बहुत सुन्दर गज़ल है, बधाई।
अच्छी गज़ल हुई है आशुतोष भाई ,बधाई। क्या"'नन्हें से'"की जगह " मासूम " लिखना ठीक है । गज़ल की बारीकियाँ मुझे नहीं मालूम।
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