For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़ी बातें मियां छोड़ों

१२२२     १२२२

बड़ी बातें मियां छोड़ों 

हमारा दिल न यूं तोड़ों

न हिन्दू है न वो मुस्लिम 

वो हिंदी है उसे जोड़ो 

छलकती हैं जहाँ आँखें 

मुझे रिन्दों वहां छोड़ों 

लगें दिलकश जो  शाखों पे 

हसीं गुल वो नहीं तोड़ों 

मिलेगी वक़्त पर कुर्सी 

मियाँ कुर्सी को मत दौड़ों 

लुटी कलियाँ चमन की हैं 

दरिंदों को नहीं छोड़ों 

बचा कुर्सी वतन बेंचा 

शरारत ये जरा छोड़ों 

जहर है अब हवाओं में 

हवा का आज रुख मोड़ों 

मौलिक व अप्रकाशित 

डॉ आशुतोष मिश्र 

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 7:26pm

भाव अच्छे हैं लेकिन शब्द लेखन में कुछ कमी सी लग रही है आ0 डॉ. आशुतोष जी....

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 21, 2013 at 11:24pm

शब्द संयोजन और भाव अच्छे है | इस हेतु बधाई 

Comment by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 6:46pm

आ0 आशुतोष मिश्रा जी छोटी बह्र मे बहुत ही बढ़िया गजल हुई है बधाई आपको । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 21, 2013 at 12:10pm

आदरणीय वीनस जी ...आपकी प्रतिक्रिया मेरे ग़ज़ल लिखने के मेरे प्रयास को सतत ही एक नयी दिशा देती  हैं ..आप सभी से तमाम पहलुओं पर आपनी चूक का अहसास हुआ .....हमारे अच्छे प्रयास पर आप की हौसला अफजाई मिली ..जैसे ही लापरवाही हुई आपने सजग कर दिया ..सतत सुधार की अपनी चेष्टा के साथ नयी नयी कमियां भी उजागर होती हैं और उन पर आपकी राय फिर एक नयी दिशा देती है ...आपको हार्दिक धन्यवाद के साथ ..सादर 

Comment by वीनस केसरी on October 21, 2013 at 1:56am

आदरनीय
अगर ये ग़ज़ल है तो गज़लियत क्यों नदारद है ... मुझे ये ग़ज़ल कम तुकबंदी जियादा लगी
मज़ा तो तब है जब एक शेर में कई पहलू मौजूद हों ,,, हर बार पढ़ा जाए तो नया अर्थ प्रस्फुटित हो ... आपकी यह रचना ऐसा करने में समर्थ नहीं है

साथ ही तोडो छोडो के साथ दौड़ो को भी आपने भर दिया है

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2013 at 11:28am

आदरणीय शिज्जू जी ..काफिया का दुहराव न हो मैं हमेशा ध्यान रखता हूँ ....आप सभी सेजब भी कुछ नया सीखने को मिलता है तो अगली ग़ज़ल में ध्यान उसी बिंदु पर ज्यादा केन्द्रित हो जाता है. ..काफिया देखता हूँ तो तमाम दोषों से ध्यान हट जाता है ..दोष देखता हूँ तो कुछ ऐसे मूलभूत बिन्दुओं से ध्यान बिकेंद्रिकृत हो जाता है ..आप सभी बिद्वत जन मेरे ग़ज़ल की राह पर मेरे चलना सीखने के गवाह बने रहें और मेरे लडखडाते क़दमों को स्थिरता हेतु हौसला  प्रदान करते रहें  ..अंतस की इन्ही भावनाओं के और सादर नमन के साथ  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2013 at 11:18am

आदरणीय सौरभ सर ..सर ये अनुस्वार daudon, chhodon  टाइप करने की गलती से हो गया ..टाइप करते समय मैं ध्यान नहीं दे पाया ..सर वाकई काफिया की पुनरावृत्ति से ग़ज़ल के लुत्फ़ में कमी आयी  ....मैं लगातार कोशिस कर रहा हूँ की आप सभी से मुझे जो भी मार्गदर्शन मिल ता है उसका मैं अपने अगले प्रयास में ध्यान रहूँ..पर हर बार कुछ न कुछ गलती मुझसे हो ही जाती है  ग़ज़ल में कमी आपके स्नेहिल मार्गदर्शन में सतत कम होती ही जायेगी 

बस मेरी तो यही ख्वाइश है की आपका  स्नेह मुझे यूं ही सतत मिलता रहे ..उसमे कभी कोई कमी न हो ...सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2013 at 11:02am

आदरणीय बैद्य नाथ जी,  गिरिराज जी , अभिनव जी ,  शकील जी आप सभी का हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ...आप सभी को सादर धन्यवाद के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 20, 2013 at 10:19am

आदरणीय डॉ आशुतोष जी छोटी बह्र पे कोशिश अच्छी है, मैं जनाब शकील साहब से सहमत हूँ, काफिया का दोहराव लुत्फ़ को कम किये दे रहा है, ग़ज़लों पर सतत प्रयास रचनाओं को बेहतर और बेहतर करेगा, शुभकामनाएं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 11:49pm

छोड़ों तोड़ों दौड़ों मोड़ों.. .इन क्रियाओं में अनुस्वार क्यों लगा है . स्पष्ट नहीं हुआ आदरणीय

ले दे के कुछ ही काफ़ियाओं का कई दफ़े आना काफ़िया का अकाल माना जाता है.

वैसे कई लोग इस प्रस्तुति से बहुत प्रभावित दीख रहे हैं. मैं उनके विरुद्ध नहीं जाना चाहता. लेकिन फिर भी, मैं बहुत संतु्ष्ट नहीं हो पाया, सर.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service