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ग़ज़ल- सारथी || दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये ||

दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये 

बस जरा सा सनम मुस्कुरा दीजिये /१ 

लूट ले जायेगा कोई रहजन सनम 

आप दिल को हमीं में छुपा दीजिये /२ 

आखरी साँस भी ले गया डाकिया 

पढ़! उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये /३ 

नींद को ठंड लग जाएगी ऐ खुदा   

लीजिये जिस्म मेरा उढ़ा दीजिये /४  

लग रहा है थका वक़्त भी घूमकर 

पांव उसके दबाकर सुला दीजिये /५   

दर्द है , ज़ख्म है लाइए इश्क़ को 

इक नया आदमी फिर बना दीजिये /६ 

शोर है भीड़ है,  यूँ जनाज़े के दिन 

‘सारथी’ इक ग़ज़ल तो सुना दीजिये/७  

.....................................................
वज्न: २१२ २१२ २१२ २१२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Sushil.Joshi on October 25, 2013 at 5:32am

आखरी साँस भी ले गया डाकिया 
पढ़! उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये...... इस शेर को समझने में दिक्क़त हो रही है आ0 सारथी जी.... जब डाकिया सब कुछ ही ले गया तो किसे पढ़ें और क्या जलाएँ....... हो सकता है यह फ़कत मेरी नासमझी ही हो.... बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु बधाई.....

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 24, 2013 at 6:12pm

अति सुन्दर बहुत खूब 

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