2122 1212 22
ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में
आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में
वक़्त रद्दे अमल का आया तो
तुम रहम खोजते हो क़ातिल में
कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी
और क्या खोजते हो बिस्मिल में
फिर मुझे याद कर रहा है वो
फिर पड़ा होगा यार मुश्किल में
अनमने से वो हाल पूछे जब
दर्द कैसे कहूँ है तिल तिल में
जो भी है आपका करम है सब
ज़र्फ़ खोजो न मुझसे जाहिल में
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ज़र्फ़ – योग्यता , सलाहियत
पास - लिहाज
रद्दे अमल – प्रतिक्रिया
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वीनस भाई , बहुत बहुत शुक्रिया , आपका गज़ल पर आने और गलतियों को सामने लाने के लिये आपका आभारी हूँ । एक एक कर सभी गलतियों सुधारने की कोशिश करूंगा ।
शुरू के तीन शेर वाकई बेहद शानदार हुए हैं .,.. मतला बहुत शानदार है
साहिल में .,.. का प्रयोग सही नहीं लगा
मुझसा जाहिल की जगह मुझ से जाहिल शायद ज़ियादा सही हो
ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में
आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में
वक़्त रद्दे अमल का आया तो
तुम रहम खोजते हो क़ातिल में
वाह जनाब आप तो छा गए
आदरणीय विशाल भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!
आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!
फिर मुझे याद कर रहा है वो
फिर पड़ा होगा यार मुश्किल में
बहुत खूब गजल के लिये दिली मुबारकबाद सर जी !!!!
भार्इ भण्डारी जी गजब का काफिया गजब का शेर खुब निर्वाह किया है
जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है।
वाकर्इ आपकी गजल में दम है।
आदरणीय शरद भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!!
फिर मुझे याद कर रहा है वो
फिर पड़ा होगा यार मुश्किल में .......सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई
आदरणीय सौरभ भाई , आपने साहिल मे और साहिल पे का अंतर बहुत अच्छे से स्पष्ट कर दिया है !!! आपका हृदय से आभार !!!
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