क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो
गर्मी में तुम चन्द्र किरण हो
और शीत में ताप अगन हो
मेरा जीवन थामा जिसने
तुम मेरा वो प्राण- पवन हो
मुझमे जीती तुम ममता हो
क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो
तुम मेरा जीवन सम्बल हो
बाहर अन्दर तुम ही बल हो
तुम अतीत हो वर्तमान हो
आने वाला तुम ही कल हो
तुम ही मेरा अता पता हो
क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो
दिवा स्वप्न मेरे जीवन का
तुम उत्तर हो हर कारण का
जोड़ जिसे निर्माता खुश है
हम दोनों का वो बंधन हो
मुझको धेरी एक लता हो
क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो
मै नदिया तुम आर पार हो
बीच भँवर मै तुम किनार हो
मै जीता हूँ सभी भाव में
तुम केवल मधु भाव प्यार हो
तुम ही मेरी प्रियंवदा हो
क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्राची जी , गीत की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ
आदरणीय अजय भाई , गीत की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!
खूबसूरत रिश्ते में रची बसी बहुत सुन्दर कोमल भावनाओं को शब्द मिले हैं
सुन्दर गीत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ० गिरिराज भंडारी जी
sir ji ......devnagiri me badhayii nahi likh sakta time lagta hai ......fir bhi in lines vishesh roop se man ko bha gayii.......
दिवा स्वप्न मेरे जीवन का
तुम उत्तर हो हर कारण का
जोड़ जिसे निर्माता खुश है
हम दोनों का वो बंधन हो
मुझको धेरी एक लता हो
क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो
आदरणीय सुशील भाई , गीत की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!
आदरणीय गीत की गम्भीरता से प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार , पवन निश्चित ही पुल्लिंग शब्द है !!!! मै शब्द कोश मे देख के ही पोस्ट किया था !!!! आपके स्नेह के लिये पुनः आभार !!!!!
बहुत ही मुग्धकारी गीत है आ0 गिरिराज जी..... वाह.... लयबद्ध...... बहुत बहुत बधाई......
केवल एक संकोच है...
तुम मेरा वो प्राण- पवन हो..... में शायद मेरा के स्थान पर मेरी हो तो....... क्योंकि पवन स्त्रीलिंग शब्द है शायद.....
बहुत ही खूबसूरत गीत| एक एक बंद दमदार है| बधाई आ0 गिरिराज जी!
वाह वाह वाह .. क्या ख़ूब ,,, बधाई
सादर
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