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क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो ( गीत ) गिरिराज भंडारी

       क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो

 

गर्मी में तुम चन्द्र किरण हो

और शीत में ताप अगन हो

मेरा जीवन थामा  जिसने

तुम मेरा वो प्राण- पवन हो 

       मुझमे जीती तुम ममता हो

       क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो

तुम मेरा जीवन सम्बल हो

बाहर अन्दर तुम ही बल हो

तुम अतीत हो वर्तमान हो

आने वाला तुम ही कल हो

     तुम ही मेरा अता पता हो

     क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो

 

दिवा स्वप्न मेरे जीवन का

तुम उत्तर हो हर कारण का

जोड़ जिसे निर्माता खुश है

हम दोनों का वो बंधन हो

           मुझको धेरी एक लता हो

           क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो

मै नदिया तुम आर  पार हो

बीच भँवर मै तुम किनार हो

मै जीता  हूँ सभी  भाव  में

तुम केवल मधु भाव प्यार हो

         तुम ही  मेरी प्रियंवदा हो

         क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो

 


*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 30, 2013 at 9:59am

आदरणीया प्राची जी , गीत की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 30, 2013 at 9:56am

आदरणीय अजय भाई , गीत की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 30, 2013 at 9:42am

खूबसूरत रिश्ते में रची बसी बहुत सुन्दर कोमल भावनाओं को शब्द मिले हैं 

सुन्दर गीत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ० गिरिराज भंडारी जी 

Comment by ajay sharma on October 24, 2013 at 11:13pm

sir ji ......devnagiri me badhayii nahi  likh sakta time lagta hai ......fir bhi in lines vishesh roop se man ko bha gayii.......

दिवा स्वप्न मेरे जीवन का

तुम उत्तर हो हर कारण का

जोड़ जिसे निर्माता खुश है

हम दोनों का वो बंधन हो

           मुझको धेरी एक लता हो

           क्या बोलूँ तुम मेरे क्या हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 10:40pm

आदरणीय सुशील भाई , गीत की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!

आदरणीय गीत की गम्भीरता से प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार , पवन निश्चित ही पुल्लिंग शब्द है !!!! मै शब्द कोश मे देख के ही पोस्ट किया था !!!! आपके स्नेह के लिये पुनः आभार !!!!!

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 8:26pm

बहुत ही मुग्धकारी गीत है आ0 गिरिराज जी..... वाह.... लयबद्ध...... बहुत बहुत बधाई......

केवल एक संकोच है...

तुम मेरा वो प्राण- पवन हो..... में शायद मेरा के स्थान पर मेरी हो तो....... क्योंकि पवन स्त्रीलिंग शब्द है शायद.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 10:42am
आदरणीया गीतिका जी , गीत का अनुमोदन कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 10:39am
आदरणीय नीलेश भाई , गीत रचना स्वीकार कर मेरा उत्साह वर्धन किया , आपका तहे दिल्से शुक्रिया !!!!!!!
Comment by वेदिका on October 24, 2013 at 8:59am

बहुत ही खूबसूरत गीत| एक एक बंद दमदार है| बधाई आ0 गिरिराज जी! 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 8:41am

वाह वाह वाह .. क्या ख़ूब ,,, बधाई 
सादर 

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