पूर्वाग्रह
नेहा कॉलेज से घर लौट रही थी.रास्ते में उसकी सहेली रश्मि मिल गई .रश्मि का घर नजदीक ही था .उसने नेहा को थोड़ी देर गप -शप करने और चाय पीकर जाने का आग्रह किया..नेहा ने बात मान ली .बातों ही बातों में नेहा ने कहा .रश्मि आजकल ``मैं बड़ी परेशान हूँ .कुछ दिनों के लिए मेरी सास आने वाली हैं ...वही ताने ..उलाहने ..अपने ज़माने की बातों से हमारी तुलना ..सच
बड़ी आफत है ...क्या करूँ?``रश्मि बोली .".देख नेहा बुरा मत मानना ....मैं भी तेरी तरह हूँ नए ज़माने की ही ..पर शायद दोनों की सोच में फर्क आ गया है ......जिस पति के साथ तेरा सुखमय जीवन बीत रहा है उसी की माँ के आने में
तुझे आफत क्यों दिखाई दे रही है ....अधिक तो नहीं पर एक बात सोच ....उनकी जगह अपने को रख .....कल तेरे बेटे की पत्नी का यही रुख होगा तो ?या सोच तेरी भाभी भी तेरी माँ के लिए ऐसा ही कहे तो ...कैसा लगेगा तुझे ..?
"
नेहा चुप रह गयी .घर लौटने तक उसकी विचार धारा पलट गयी .सच माँ तो माँ ही होती है .उसके पति की माँ है उसे भी उतना ही -सम्मान देना चाहिए जितना वह अपनी माँ को देती है .क्यों हम लोग पहले से ही इस पूर्वाग्रह से ग्रसित हो जाती हैं कि सास बुरी ही होगी ?घर पहुँचने तक उसके सारे अवसाद दूर हो चुके थे .वह बच्चों के साथ उनकी दादी माँ के आने की
तैयारी में जुट गई .
अप्रकाशित एवं मौलिक लघुकथा
ज्योतिर्मयी पन्त
Comment
आ. ज्योतिर्मयी जी,
नेहा ने अपने पति के सास की तरह ही अपनी सास के लिये तैयारी करनी शुरु कर दी. सुन्दर कथा.
सादर.
prenadayak..:)
आपका बहुत -बहुत आभार सरिता भाटिया जी .
सुशील जोशी जी लघुकथा पसंद करने हेतु आपका ह्रदय से आभार .
विजय मिश्र जी आपका हार्दिक आभार .
अन्नपूर्णा बाजपेयी जी हार्दिक आभार .
विशाल चर्चित जी समय देने और पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार .
डा.आशुतोष बाजपेयी जी कहानी पसंद आई लेखन को सार्थकता मिली हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ .
आपका हार्दिक आभार लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाला जी .
हार्दिक आभार मीना जी .
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