आसमान पर, बादलों की बेहद घनघोर काली घटा छाई हुयी थी, न जाने इतना पानी बरश के कहाँ समायेगा, जमीन की पूरी गर्मी, बादलों को अपने ऊपर, मेहरबान होने का पूरा जोर लगाकर निमंत्रण दे रही थी..
....तभी एक शानदार चौपहिया वाहन आकर रुका, शायद उसमे कुछ खराबी आ गयी थी, चालक सीट पर बैठे साहब, ने अपनी आखों पर से तपती दुपहरी को, शीतल शाम करने वाला कत्थई पारदर्शी पर्दा उतारा और दरवाजा खोल के बाहर निकले, ऊपर आसमान की तरफ देखते हुए, वास्तविकता की जमींन पर कदम रखकर,सर्वप्रथम अपने छोटे से जेब से, बड़ा सा बिना तार का दूरभाष केंद्र निकाल लिया और अपनी नाजुक उँगलियों से, उस डब्बे की पारदर्शी त्वचा को, बहुत देर तक फिसलाते रहे, शायद आधुनिक कुतुबमीनार से दूरी ज्यादा थी..या लाखों लोग उस कुतुबमीनार पर चढ़े हुए थे..तो हो सकता है, .साहब को चढ़ने के लिए, सीढ़ी भी नसीब नहीं हो रही थी..
उधर वाहन में मेमसाहब, अपने छोटे से बच्चे को, ,मुंह से फूंक देकर बिना खपत के वातानुकूलित का मजा दे रही थी, मासूम बच्चा, मुस्कुरा रहा था....
मेमसाहब भी बार-बार, अव्वल दर्जे के जानवर की त्वचा से निर्मित थैले में से छोटा सा आईना निकालकर, अपने हिंदुस्तान के सादगी भरे व् सुंदर मुखड़े पर, पश्चमी रंग-रोगन को उतरता देख, अवसाद से ग्रसित हो रहीं थी..
यह सब पश्चमी देश व् भारतवर्ष की मिली जुली समस्या को देख, वहां से गुजरते हुए एक गाँव के युवक ने बड़ी विनम्रता पूछा...साहब क्या हुआ आपकी गाड़ी को, मैं कुछ सहायता करूं क्या....
साहब ने अपनी शहरी नजरों से, उस गाँव के गवांर को ऊपर से नीचे तक देखा और अपने पूरे घमंड व् शिक्षा के मद से भरी, जिभान से मारकर कहा... तू जानता है मैं कौन हूँ? बहुत पढ़ा लिखा हूँ..बहुत बड़ी कंपनी में मेकेनीकल इंजीनियर हूँ,..चल जा यहाँ से अपना रास्ता नाप....
गवांर युवक नीचा सिर करके कहने लगा.., साहब आपके साथ,मेमसाहब और छोटा सा बच्चा है, यहाँ थोड़ी सी भी बारिश होने पर, यह गाँव टापू बन जाता है, आप परेशानी में आजायेंगे....
उस युवक की मदद की गुहार में लार,टपकाती जिभान ने साहब को पसीजने पर मजबूर कर दिया,
युवक ने फटाफट अपना हुनर दिखाकर करीब १०-१५ मिनिट में, गाड़ी सुधार दी, अपने स्वेत सूती गमछे से अपना पसीना पोंछते हुए, साहब से विनती करते हुए कहा... लीजिये साहब आपकी गाड़ी, अब आप तुरंत यहाँ से रवाना हो जाईये....
साहब गाड़ी में बैठे, गाड़ी चालू की और उस युवक को ५०० का नोट देने लगे,
युवक ने बड़ी विनम्रता से कहा...नहीं साहब.धन्यवाद. साहब मेरे पास ईश्वर की दया से सब कुछ है, मैंने भी शहर से ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग की पढाई की है, पढाई के साथ-साथ मैं जेब खर्च के लिए, ऑटो गैरेज पर मैकेनिक का काम करता था,मैं घर में सबसे छोटा था, पिता व् भाई पर सबकी पढाई व् बहनों की शादी का खर्च, ब्याज के रूप में, रोज बढता ही जा रहा था, बेरोजगारी से अच्छा, यहाँ गाँव में पूर्वजों की जमीन पर, खेती करना, बेहतर समझा...बस अब आप सभी, देशवाशियो को भूखा व् नंगा न रहना पड़े, इसी लगन को अपना फर्ज बना बैठा हूँ.... बस आप जल्दी से निकल जाइये...
साहब ने अपना एप्पल एंड्राइड फ़ोन अपने जेब में रखा, फ़ॉसट्रक सनग्लास अपनी आँखों पर चढ़ाकर, अपनी फरारी कार के ग्लास लगा कर, ऐ. सी. ऑन किया और कार के अन्दर, अपनी पत्नी व् बच्चे के साथ, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, पश्चमी ऑक्सीजन को ग्रहण कर, पूर्ण कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ , बड़ी स्पीड से, मेरे गाँव की पवित्र धूल के साथ, अपनी पश्चमी सभ्यता का धुआं उड़ाते हुए चले गये..
थोड़ी देर में वहां,बारिश की बड़ी बड़ी बुँदे लगातार बरसने लगी और पूरा ग्रामीण क्षेत्र, विशाल टापू में तब्दील होने लगा...
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
सर्वप्रथम आपका हृदय से आभार आदरणीय सौरभ जी ,अपने अनावश्यक उत्साह के कारण रचना में जिन त्रुटियों की तरफ आपने इंगित किया है, मैं उन्हें आपके कहने अनुसार सुधार के लिए और अधिक प्रयासरत रहूँगा, रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार काफी समय से कर रहा था, विलम्ब से ही सही ,आपका रचना पर मार्गदर्शन व् स्नेह पाकर मुझे बहुत ख़ुशी मिली ,
प्रयास बढिया रहा लेकिन अभी बहुत कुछ संयत करना होगा. भाईजी.
अनावश्यक उत्साह और शाब्दिक अतिरेक से जितना शीघ्र हो सके बचने का अभ्यास करने लगें. अब निम्नलिखित वाक्यांशों का क्या अर्थ निकाला जाय ? --
१. बादलों की बेहद घनघोर घटा का छाना .. क्या बादलों के बग़ैर भी घनघोर घटा छाती है ?
२. पूरा जोर लगा कर निमंत्रण देना .. यह कैसा निमन्त्रण देना हुआ ?
३. बड़ा सा बिना तार का दूरभाष केंद्र निकाल लिया जाना .. ..इस वाक्यांश का अर्थ समझ रहे हैं आप ?
४. अव्वल दर्जे के जानवर की त्वचा से निर्मित थैले में से छोटा सा आईना निकालकर, अपने हिंदुस्तान के सादगी भरे व सुंदर मुखड़े पर, पश्चमी रंग-रोगन को उतरता देख, अवसाद से ग्रसित होना .. .. ????
५. गाँव के गवांर को ऊपर से नीचे तक देखना.. . गाँव के अव्यावहारिक को ही गँवार कहते हैं न ?
और भी बहुत कुछ
इसके अलावे टंकण त्रुटियों की ओर पहले ही कहा जा चुका है.
आप अभ्यासरत रहें और सुधार हेतु प्रयासरत रहें.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय राम भाई, आपका हृदय से आभार स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आपका बहुत बहुत आभार, आदरणीय विजय निकोर जी, अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आदरणीय अरुण निगम जी, आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
सादर!
आदरणीय शुशील जी, यह एक वास्तविक सच है, इसमें गाँव का गवांर मैं स्वयं ही हूँ, इस घटना को मैंने आप सभी के समक्ष, एक व्यंगात्मक लेख के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें देखा जाये तो एक कडवी सच्चाई छिपी हुयी है, इस देश में विज्ञानं से बहुत विकास हुआ है, सच तो यह है कि हम किसानों को बहुत सहयोग मिला है, जैसे हार्वेस्टर, ट्रेक्टर, और भी कई तरह के यन्त्र व् रासायनिक खाद, दवाइयां आदि.
परन्तु शायद जो समस्याएँ है वो रहेगीं, मेरे सोच के अनुसार अगर हमारे देश में धूल है तो वो यहाँ की उर्वरक क्षमता की मिट्टी का गुण है, , बारिश से रास्तों का बंद हो जाना तो यहाँ की भोगोलिक सरंचना ही ऐसी है, रहा शहर या गाँव का अन्तर , तो बहुत समय पहले शहर भी एक गाँव ही था, जैसे देखा जाये तो हर शहर या गाँव नदियों के किनारे ही मिलेगें, क्यूंकि उनके बसते समय वहां उपयोगी पानी हेतु कुआ, नलकूप या अन्य सुविधाएँ नही होती थी, अपनी अपनी रोजी रोटी व् शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला इन्सान पहुँच गया, और बस गया, शहर से गाँव है और गाँव से शहर, बस इस आधुनिकता के परिवेश व् आदतों ने इन्सान को जकड रखा है जो अपना कर्तव्य भूल रहा है, कई लोग शिक्षा प्राप्त करने गये, और अजनबियों को अपना बना कर अपनों को भूल बैठे, और कई अजनबी अपनों को मिल गये, बात बराबर हो गयी..:)
माफ़ कीजिये अपनी भावनाओं में कुछ ज्यादा कह गया हूँ तो, अपना स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
सादर!
आदरणीय अखिलेश जी, आपका बहुत बहुत आभार, आशीर्वाद बनाये रखियेगा
आपका कहना सही है, किन्तु एक ही देश में रह रहे इन्सान जब, अपने ही लोगों, जो कि आप ही के देश के है उनके प्रति तुच्छ दृष्टी रखते है तो तकलीफ होती है..
सादर!
आपका हृदय से आभार आदरणीय शिज्जू जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आपकी प्रतिक्रिया से मन को बहुत ख़ुशी व् लेखनकर्म को मनोबल मिलता है, आदरणीय अरुण अनंत जी,
ओ बी ओ के असर आप जैसे सभी मित्रों व् सुधिजनो के सहयोग से ही, मेरे जैसे पाठक को कुछ अपने अंतर की भावनाओं को कहना आ गया है, भविष्य में अपनी टाइपिंग त्रुटियों पर विशेष ध्यान रखूँगा, आप अपना स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
सादर!
आदरणीय गिरिराज जी, आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु अनेको धन्यवाद, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
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