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आप तो सचमुच कमाल करते हो
बेवफा होकर सवाल करते हो
जंग में तो हार जीत जायज है
हारने का क्यों मलाल करते हो
क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से ही बवाल करते हो
.
पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो
.
आदमी तो मर गया कभी से था
आत्मा को भी हलाल करते हो
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित रचना
Comment
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो.. वाह वाह
एक बात भाईसाहब, बेवफ़ा ही तो सवाल करता /करती है.
शुभ-शुभ
शुक्रिया अरुन निगम जी
शुक्रिया सुशील जोशी जी
शुक्रिया विजय मिश्र जी
शुक्रिया अरुन अनन्त जी आपको
शुक्रिया राम शिरोमणि जी आपको
शुक्रिया निलेश भाई जी आपके स्नेह के लिये
सुक्रिया मोहन बेगोवाल जी
सुक्रिया Rajesh kumari ji आपका मार्गदर्शन सर आँखों पर है आभार
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