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क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,

क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,
क्या मिलता हैं तुझको यैसे में मुझे तरपाकर ,
जानती हो तुझको ही चाहू रखा हु दिल में बसाकर ,
सातों जनम का साथ हैं अपना साबित करू अपनाकर ,
क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,
मेरी नेह के नाता जानम तेरी सुन्दर काया नहीं ,
जनम जनम का प्रीत का खेल तब मिले हम यही ,
एक बार तू पास तो आओ मुझे समझो अंग लगाकर ,
बात मेरी मनो मुझको जानो देखो न नजर मिलकर ,
क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,

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Comment by Biresh kumar on May 30, 2010 at 9:47am
बात मेरी मनो मुझको जानो देखो न नजर मिलकर ,
क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर ,
hila deli re baba....really great
Comment by Rash Bihari Ravi on May 28, 2010 at 2:54pm
dhanyabad sir
Comment by satish mapatpuri on May 28, 2010 at 2:50pm
जनम जनम का प्रीत का खेल तब मिले हम यही ,
एक बार तू पास तो आओ मुझे समझो अंग लगाके ,
बात मेरी मनो मुझको जानो देखो न नजर मिलके ,
क्यों मुझे सताती हो यैसे एक झलक दिखलाकर
गुरु जी, सादर परनाम. बड़ा खुबसूरत तसव्वुर है. बधाई हो.

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