मासूम सी हूँ मैं .... नाजुक सी |
अभिलाषा भी .... एक नन्हीं सी |
जीवन ये जो ...दिया विधाता ने |
जियूँ ना जीवन क्यूँ अधिकारी सी|| (1)
लगा था मुझे .. मैं भी .. इक इन्सान हूँ |
डूबी जिन्दगी क्यूँ आँसुओं में .. हैरान हूँ |
बता दो कोई .. इस दर्द की दवा क्या है ?
या मैं सिर्फ .. हवस का एक सामान हूँ || (2)
मिल ना पाए सजनी कोई सपनों की |
सूनी हुई कलाई भी राखी पे भाई की |
छीनी जिन्दगी जो कोख में बिटिया की |
मर गई या फिर वहशत में दरिंदगी की || (3)
कैद है ललिया यूँ ही बंदिशे जंजीरों में |
महफूज है ही कहाँ हैवानी सी नजरों में |
आया कहाँ मर के भी चैन तुझे कब्रों में
लिप्त रही मनसा..उन अप्सराओं हूरों में || (4)
-------------------अलका गुप्ता -------------------
Comment
आर्दिक आभार आपका एवं आपके प्रेरक शब्दों का आदरणीय साथियों
आदरणीया अलका जी, सुंदर सार्थक रचना पर बधाई स्वीकारें
आदरणीया अलकाजी आपने बेटी के जीवन के कुछ कठोर पहलुओं को मार्मिकता से प्रस्तुत किया है, इस रचना के लिये दिली मुबारकबाद कुबूल करें
सुनदर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!
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