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मासूम सी हूँ मैं .... नाजुक सी |
अभिलाषा भी .... एक नन्हीं सी |
जीवन ये जो ...दिया विधाता ने |
जियूँ ना जीवन क्यूँ अधिकारी सी|| (1)

लगा था मुझे .. मैं भी .. इक इन्सान हूँ |
डूबी जिन्दगी क्यूँ आँसुओं में .. हैरान हूँ |
बता दो कोई .. इस दर्द की दवा क्या है ?
या मैं सिर्फ .. हवस का एक सामान हूँ || (2)

मिल ना पाए सजनी कोई सपनों की |
सूनी हुई कलाई भी राखी पे भाई की |
छीनी जिन्दगी जो कोख में बिटिया की |
मर गई या फिर वहशत में दरिंदगी की || (3)

कैद है ललिया यूँ ही बंदिशे जंजीरों में |
महफूज है ही कहाँ हैवानी सी नजरों में |
आया कहाँ मर के भी चैन तुझे कब्रों में 
लिप्त रही मनसा..उन अप्सराओं हूरों में || (4)

-------------------अलका गुप्ता -------------------

नोट - यह मेरी स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना है 

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Comment by Alka Gupta on December 26, 2013 at 10:24pm

आर्दिक आभार आपका एवं आपके प्रेरक शब्दों का आदरणीय साथियों 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 24, 2013 at 9:32am

आदरणीया अलका जी, सुंदर सार्थक रचना पर बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 24, 2013 at 8:52am

आदरणीया अलकाजी आपने बेटी के जीवन के कुछ कठोर पहलुओं को मार्मिकता से प्रस्तुत किया है, इस रचना के लिये दिली मुबारकबाद कुबूल करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 23, 2013 at 9:11pm

सुनदर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

कृपया ध्यान दे...

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