एक प्रयास मित्रों !!!
******(लोक-गीत)*******
गीतु लिखे वियोग मअ..अगन के |
जलत रातु -दिनु..बिनु सजन के ||
आए अबके न सावनु झूम के |
बौराए अबके न डारि अम्बुआ के |
भीज गयी असुअन.. हिचकारी रे |
जलत रातु -दिनु ..बिनु सजन के |
गीतु लिखे वियोग मअ.. अगन के ||
आगु लगे ..संगिनी -साथिन के |
बैठे राहें तन्हा..अँधेरिया अटारी पे…
Added by Alka Gupta on April 23, 2014 at 6:30pm — 10 Comments
शब्द भावों के गले मिलने लगें |
ह्रदय हर किसी के.. मथने लगें |
गुदगुदाते ...लताड़ते से...कभी...
सहलाते से जीवन संवारने लगें ||
राह अभिव्यक्ति की चलने लगें |
शब्द घेरे में जब ..सिमटने लगें |
शब्द मात्रा..रस..छंद..अलंकार में ..
स्मृतियाँ महाकाव्य सी रचने लगें ||
प्रताड़ना से घिरे शब्द भर्त्सना पाने लगें |…
Added by Alka Gupta on December 27, 2013 at 10:00am — 10 Comments
पूरण करे प्रकृति अभिमंत्रित काम ये काज |
सृष्टि निरंतर प्रवाहित होवे निमित्त यही राज ||
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हाय ! कौन आकर्षण में
बींध रहा है ...मन आज |
नयन ही नयनों से
खेलन लगे हैं रास ||
घायल हुआ मन...अनंग
तीक्ष्ण वाणों से आज |
टूट गए बन्धन ...लाज
गुंफन के सब फांस ||
करने लगे..... झंकृत...…
Added by Alka Gupta on November 23, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
मासूम सी हूँ मैं .... नाजुक सी |
अभिलाषा भी .... एक नन्हीं सी |
जीवन ये जो ...दिया विधाता ने |
जियूँ ना जीवन क्यूँ अधिकारी सी|| (1)
लगा था मुझे .. मैं भी .. इक इन्सान हूँ |
डूबी जिन्दगी क्यूँ आँसुओं में .. हैरान हूँ |
बता दो कोई .. इस दर्द की दवा क्या है ?
या मैं सिर्फ .. हवस का एक सामान हूँ || (2)
मिल ना पाए सजनी कोई…
Added by Alka Gupta on November 22, 2013 at 10:50pm — 4 Comments
पार गगन
पंक्षी सा उड़ जाऊं
पंख पसार ...(१)
मीठी वानी
कुटिल सयानी सी
मन की काली...(२)
है मतवाली
फिरती डाली डाली
कोयल ये काली ...(३)
------अलका गुप्ता -----
नोट - यह मेरी स्व रचित मौलिक रचना है
Added by Alka Gupta on November 18, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
नील गगन हे ! सावधान |
साध ये ..सतरंगी कमान |
आया है... कौन काज ...
अनंग ले ...ये काम वान ||
शाख शजर के डेरा डाल |
मन करे..घायल बेहाल |
हरी हरियाली पाँखों बीच ..
ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||
मौसम ये भीगा-भीगा आया |
काले-काले...बदरा लाया |
वावली हुईं…
Added by Alka Gupta on October 30, 2013 at 11:03pm — 8 Comments
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