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Alka Gupta's Blog (6)

******(लोक-गीत)*******

एक प्रयास मित्रों !!! 

******(लोक-गीत)*******



गीतु लिखे वियोग मअ..अगन के |

जलत रातु -दिनु..बिनु सजन के ||



आए अबके न सावनु झूम के |

बौराए अबके न डारि अम्बुआ के |

भीज गयी असुअन.. हिचकारी रे |

जलत रातु -दिनु ..बिनु सजन के |

गीतु लिखे वियोग मअ.. अगन के ||



आगु लगे ..संगिनी -साथिन के |

बैठे राहें तन्हा..अँधेरिया अटारी पे…

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Added by Alka Gupta on April 23, 2014 at 6:30pm — 10 Comments

शब्द

शब्द भावों के गले मिलने लगें |

ह्रदय हर किसी के.. मथने लगें |

गुदगुदाते ...लताड़ते से...कभी...

सहलाते से जीवन संवारने लगें ||



राह अभिव्यक्ति की चलने लगें |

शब्द घेरे में जब ..सिमटने लगें |

शब्द मात्रा..रस..छंद..अलंकार में ..

स्मृतियाँ महाकाव्य सी रचने लगें ||



प्रताड़ना से घिरे शब्द भर्त्सना पाने लगें |…

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Added by Alka Gupta on December 27, 2013 at 10:00am — 10 Comments

काम वाण

पूरण करे प्रकृति अभिमंत्रित काम ये काज |

सृष्टि निरंतर प्रवाहित होवे निमित्त यही राज ||

-----------------------------------------------



हाय ! कौन आकर्षण में

बींध रहा है ...मन आज |

नयन ही नयनों से 

खेलन लगे हैं रास ||



घायल हुआ मन...अनंग

तीक्ष्ण वाणों से आज |

टूट गए बन्धन ...लाज 

गुंफन के सब फांस ||



करने लगे..... झंकृत...…

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Added by Alka Gupta on November 23, 2013 at 10:30pm — 12 Comments

बेटी

मासूम सी हूँ मैं .... नाजुक सी |

अभिलाषा भी .... एक नन्हीं सी |

जीवन ये जो ...दिया विधाता ने |

जियूँ ना जीवन क्यूँ अधिकारी सी|| (1)



लगा था मुझे .. मैं भी .. इक इन्सान हूँ |

डूबी जिन्दगी क्यूँ आँसुओं में .. हैरान हूँ |

बता दो कोई .. इस दर्द की दवा क्या है ?

या मैं सिर्फ .. हवस का एक सामान हूँ || (2)



मिल ना पाए सजनी कोई…

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Added by Alka Gupta on November 22, 2013 at 10:50pm — 4 Comments

हाइकु

पार गगन  

पंक्षी सा उड़ जाऊं 
पंख पसार ...(१)

मीठी वानी 
कुटिल सयानी सी 
मन की काली...(२)

है मतवाली
फिरती डाली डाली 
कोयल ये काली ...(३)

------अलका गुप्ता -----

नोट - यह मेरी स्व रचित मौलिक रचना है 

Added by Alka Gupta on November 18, 2013 at 3:30pm — 11 Comments

सतरंगी कमान |

नील गगन हे ! सावधान |

साध ये ..सतरंगी कमान |

आया है... कौन काज ...

अनंग ले ...ये काम वान ||



शाख शजर के डेरा डाल |

मन करे..घायल बेहाल |

हरी हरियाली पाँखों बीच ..

ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||



मौसम ये भीगा-भीगा आया |

काले-काले...बदरा लाया |

वावली हुईं…

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Added by Alka Gupta on October 30, 2013 at 11:03pm — 8 Comments

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