नील गगन हे ! सावधान |
साध ये ..सतरंगी कमान |
आया है... कौन काज ...
अनंग ले ...ये काम वान ||
शाख शजर के डेरा डाल |
मन करे..घायल बेहाल |
हरी हरियाली पाँखों बीच ..
ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||
मौसम ये भीगा-भीगा आया |
काले-काले...बदरा लाया |
वावली हुईं यादें सांवरिया की ..
मन व्याकुल मिलन को भरमाया ||
नई नवेली वधु सी मैं शरमाऊं |
सोंच-सोंच कर..मैं घबराऊं |
कारन जिसके अब तक जली मैं
इस सावन यूँ ही ना मर जाऊं ||
----------अलका गुप्ता -----------
यह मेरी मौलिक व अप्रकाशित रचना है
Comment
हार्दिक आभार आपका एवं आपके प्रेरक शब्दों हेतु आदरणीय साथियों ......!!!!!
इस सुंदर भावपूर्ण गीत के लिए बधाई आ0 अलका जी....
बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
आखिरी बंद में दूसरी और तीसरी पंक्ति में कही गयी बात पूरी नहीं हुई है. अंतिम पंक्ति उसी तारतम्य में होनी चाहिए थी.
सादर!
आ. अलकाजी बधाई सुंदर भाव सुंदर गीत।
आ0 अल्का जी, सुंदर रचना। सुन्दर भाव। शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर,
शाख शजर के डेरा डाल |
मन करे..घायल बेहाल |
हरी हरियाली पाँखों बीच ..
ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||
क्या भाव उकेरे है अलका जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें
आदरणीया अलका जी , सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!
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