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नील गगन हे ! सावधान |
साध ये ..सतरंगी कमान |
आया है... कौन काज ...
अनंग ले ...ये काम वान ||

शाख शजर के डेरा डाल |
मन करे..घायल बेहाल |
हरी हरियाली पाँखों बीच ..
ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||

मौसम ये भीगा-भीगा आया |
काले-काले...बदरा लाया |
वावली हुईं यादें सांवरिया की ..
मन व्याकुल मिलन को भरमाया ||

नई नवेली वधु सी मैं शरमाऊं |
सोंच-सोंच कर..मैं घबराऊं | 
कारन जिसके अब तक जली मैं 
इस सावन यूँ ही ना मर जाऊं ||

----------अलका गुप्ता -----------
यह मेरी मौलिक व अप्रकाशित रचना है 

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Comment

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Comment by Alka Gupta on November 18, 2013 at 2:31pm

हार्दिक आभार आपका एवं आपके प्रेरक शब्दों हेतु आदरणीय साथियों ......!!!!!

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 5:06am

इस सुंदर भावपूर्ण गीत के लिए बधाई आ0 अलका जी....

Comment by बृजेश नीरज on November 3, 2013 at 11:05am

बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

आखिरी बंद में दूसरी और तीसरी पंक्ति में कही गयी बात पूरी नहीं हुई है. अंतिम पंक्ति उसी तारतम्य में होनी चाहिए थी.

सादर!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 31, 2013 at 10:28pm

आ. अलकाजी बधाई सुंदर भाव सुंदर गीत।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 31, 2013 at 7:36pm

आ0 अल्का जी,  सुंदर रचना। सुन्दर भाव।  शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधाई स्वीकारे।  सादर,

Comment by Ravi Prabhakar on October 31, 2013 at 6:28pm

शाख शजर के डेरा डाल |
मन करे..घायल बेहाल |
हरी हरियाली पाँखों बीच ..
ओढ़े बैठा सतरंगी शाल ||

क्‍या भाव उकेरे है अलका जी, हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें

Comment by विजय मिश्र on October 31, 2013 at 6:04pm
बिरह पर एक सुंदर भाव रचना प्रस्तुति के लिए साधुवाद अलकाजी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 31, 2013 at 1:58pm

आदरणीया अलका जी , सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

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