For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँगा किंतु अँगूठा क्यूँ है........

कुछ तो बात रही होगी ही ,वरना तुमसे रूठा क्यूँ है
हाथों में हर दम रहता था , वही खिलौना टूटा क्यूँ है

तुमने तो लिखा था मुझको सारी कसमें हैं उससे ही
अब वो कसमें कोरी कैसे , अब वो बोलो झूंटा क्यूँ है

हर पन्ने पर नाम लिखा था हर पंक्ति मे ज़िक्र था उसका
ज़िल्द बची क्यूँ उस क़िताब की , आख़िर वो ही छूटा क्यूँ है

जिसका मन मंदिर था तेरा , मूरत थी आराधन वंदन
जिसकी ख़ातिर व्रत रखे थे , वही प्रसाद अब जूठा क्यूँ है

जिससे ही हो कर जाती थीं , तेरे हाथों की रेखाएँ
नहीं हथेली उसकी माँगी , माँगा किंतु अँगूठा क्यूँ है

मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

Views: 325

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 6:26pm

आदरणीय अजय भाई , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 5:14pm

आदरणीय अजय जी बहुत ही सुन्दर भाव खूबसूरत प्रयास तनिक समय और दे देते तो रचना निखर कर सामने आती खैर प्रयास बहुत ही अच्छा इस हेतु बधाई स्वीकारें.

झूंटा को झूठा कर लें. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय सुरेन्द्र जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है। शेष तिलकराज जी ने विस्तृत तौर पर बता दिया है। मेरी…"
7 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय सुरेन्द्र जी, पोस्ट पर आने व सुझाव देने के लिए हार्दिक आभार।"
20 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई जी हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।। सादर जी।"
21 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और ग़ज़ल को इतना समय देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
22 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल के प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें जी। तक़रार इस्त्रिलिंग है…"
2 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ बधाई स्वीकार करें जी। दिल में…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय रिचा यादव जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय निलेश "नूर" जी, आप लाजवाब ग़ज़ल लिखते है। बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तमाम आज़ी जी, उम्दा ग़ज़ल है आपकी। बधाई स्वीकार करें। आदरणीय तिलकराज जी के सुझावों से ये और…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल — 221 1221 1221 122 है प्यार अगर मुझसे निभाने के लिए आकुछ और नहीं मुखड़ा दिखाने के लिए…"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय धामी सर इस ज़र्रा नवाज़ी का"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service