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थकन जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं...............

ग़म ए दौरा से बेख़बर हूँ मैं 
निरंतर बह रहा हूँ समंदर हूँ मैं

सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की 
थकन  जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं

ले ले इम्तहाँ मेरा कोई तूफ़ा भी अगर चाहे 
ज़ॅमी पे सब्र की ज़िद का इक घर हूँ मैं

गमों के काफिलों की राह मैं "अजय" 
उम्मीद का इक पत्थर हूँ मैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2013 at 1:50pm

सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की 
थकन  जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं------बहुत सुन्दर शानदार भाव 

आपको बधाई इस भाव पूर्ण प्रस्तुति हेतु. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 15, 2013 at 9:36pm

आदरणीय अजय भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 15, 2013 at 7:39pm

इस रचना के लिये बधाई आदरणीय अजयजी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2013 at 2:27pm

अजय शर्मा जी

बहुत अच्छी गस्जल कही आपने

आदरणीया कुंती जी ने जिस शेर का जिज्क्र किया है वह लाजवाब है i

मेरी बधाइयाँ i

Comment by coontee mukerji on December 14, 2013 at 5:44pm

सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की 
थकन  जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं.....बहुत सुंदर

Comment by Shyam Narain Verma on December 14, 2013 at 11:12am
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको …………..

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