कभी जब तुम नही रहते ,
तुम्हारा कोई "अहसास" रहता है
कि जैसे बंद कमरे मे
कोई आहट गुजरती हो
कि जैसे हवा के साथ कोई
ख़ुशनुमा ठंडा झोंका
मेरे कमरे में आता , जाता
पर
ठहरता नहीं है
कि जैसे किसी बंद क़िताब के पन्ने
कोई सदा देते हों
कि जैसे पुराने खतों की खुश्बू
गुदगुदाती हो
कोई पुरानी तस्वीर
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई ,
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है
कभी जब तुम नहीं रहते ,
तुम्हारा कोई " अहसास" रहता है..........
अजय कुमार शर्मा
अप्रकाशित एवं अमुद्रित
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Comment
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय अजय जी।
सादर,
विजय निकोर
कोई पुरानी तस्वीर
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई ,
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है
कभी जब तुम नहीं रहते ,
तुम्हारा कोई " अहसास" रहता है...
जीवन में जो आपका प्रिय हो, अगर आपके करीब न हो तो, एक एहसास सदा आपके पास होता है, हृदयस्पर्शी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी
किसी अपने के पास न होते हुए भी होने के एहसास को जीते हुए लिखी गयी इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
कोई पुरानी तस्वीर
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई ,
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है
कभी जब तुम नहीं रहते ,
सुंदर एहसास, दिल को छूता हुआ
बहुत खूब अजय जी ।
आदरनीय अजय जी बेहतरीन रचना के लिए हर्दिक
जय हो, बहुत सुंदर प्रस्तुति, सादर
आदरणीय अजय भाई , एक मनः स्थिति का बहुत भाव पूर्ण प्रस्तुति !!! आपको हार्दिक बधाई !!!!
आदरणीय अजय जी प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें शेष आदरणीय भ्राताश्री जी ने कह दिया है उनकी बातों का सज्ञान करें.
आदरणीय अजय शर्मा जी, कथ्य को यदि शिल्प का सहारा मिल जाय तो रचना में जान आ जाया करती है, इस प्रयास पर बधाई प्रेषित है ।
आपका अहसास चिरंतन है i इस अहसास से सभी गुजरते है i पर आपके शब्दों में जो दर्द है वह इस अहसास को भाव प्रवण बनाता है i
मेरा स्नेह i
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