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दम भूख से हैं तोड़ते मासूम जमीं पर
पीकर शराब मस्ती में तू झूम जमी पर
बच्चे मनाते फुलझड़ी बिन रो के दिवाली
पीकर तुझे लगे मची है धूम जमी पर
अम्बार फरजी डिग्रियों के तूने लगाए
लटका के अब गले में इन्हें घूम जमी पर
दो बूँद अश्क जो गिरे आँखों से यूं तेरी
सारे शहर में उग गए मशरूम जमी पर
सड़कों पे गर पिया तो पोलिश का भी है पंगा
बनवा ले झुरमुटों में ही कोई रूम जमी पर
दिन ढलते शाम होते ही अद्धा तू गटक ले
जन्नत है कैसी हो तुझे मालूम जमी पर
मासूम लाडले तेरे भटकेंगे गली में
हो वक़्त से पहले ही न मरहूम जमी पर
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष जी , बहुत बढ़िया गज़ल है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!!
दो बूँद अश्क जो गिरे आँखों से यूं तेरी
सारे शहर में उग गए मशरूम जमी पर ...........बहुत खूब.
आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत बढ़िया गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!!
आशीष जी ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए मेरी तरफ से हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें ..सादर
आदरणीय बागी सर ..मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का प्रतीक्षा रहती है आप समय समय पर अपनी टिप्पड़ियों के माध्यम से मुझे सजग बनाते हुए सोच की नूतन दिशा देते रहे है ..लेकिन आज आपकी उपस्थित तो दर्ज है पर कोई कमेन्ट नहीं है ..सादर
आदरणीय गोपाल सर ...आपके स्नेहिल शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ,,,सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय श्याम जी ...आपके मशविरे पर अमल का ध्यान रखूंगा ,,आपको मेरी रचना पसंद आयी यह मेरे लिए उत्साहवर्धक है
आदरणीय शिज्जू जी ...आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद ..saadar
मासूम लाडले तेरे भटकेंगे गली में
हो वक़्त से पहले ही न मरहूम जमी पर |
वाह वाह बहुत खूब आशुतोष जी !!
वाह वाह, क्या बात है, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल कही है, आनंद आ गया, खास कर यह शेर ............
अम्बार फरजी डिग्रियों के तूने लगाए
लटका के अब गले में इन्हें घूम जमी पर
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें |
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