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प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?
प्यार में अब चल रही यूँ कर्द क्यों है ?
यार को जो हैं समझते इक खिलौना
प्यार जाने हो गया अब नर्द क्यों है ?
है बिना दस्तक चला आता सदा जो
वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?
छू रही है रूह मेरी आते जाते
यह तुम्हारी साँस इतनी सर्द क्यों है ?
अपनी यादों को समेटे जब गए हो
आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ?
प्यार पर है जुल्म करता रोज ही जो
यह जमाना हो गया बेदर्द क्यों है ?
तुम समझती हो मुहब्बत जिसको सरिता
वो बना तेरे लिए सरदर्द क्यों है ?
कर्द ..छुरी
नर्द .. चौसर
...मौलिक एवं संशोधित ....
Comment
सुन्दर ग़ज़ल... आदरणीया सरिता भाटिया जी... हार्दिक बधाई स्वीकारें....
(लफ्ज़ "कर्द" में अटका हुआ हूँ...)
सादर..
शुक्रिया अरुण ,स्नेह बनाए रखें
राजेश दी हार्दिक आभार , मार्गदर्शन करती रहें
आदरणीय निलेश जी उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया
गुरुदेव हार्दिक आभार आपको गजल पसंद आई
आदरणीय उमेश जी आदरणीया परवीन जी शुक्रिया
आदरणीय श्याम नारायण जी ,तपन दूबे जी ,मीना पाठक जी हार्दिक आभार
आदरणीय सरिता जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने काफिया कठिन है इसका निर्वाह अच्छे से कर गए आप. दिल से बधाई स्वीकारें.
सुन्दर ग़ज़ल हुई है प्रिय सरिता जी ---इस शेर के भाव थोड़े उलझ रहे हैं
है बिना दस्तक चला आता सदा जो
वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?
बाकी ग़ज़ल तारीफ़ की हक़दार है बहुत बहुत बधाई
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