अनंग शॆखर छन्द =
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कभी डरॆ नहीं कभी मरॆ नहीं सपूत वॊ, प्रचंड वृष्टि बर्फ और ताप मॆं खड़ॆ रहॆ ॥
हिमाद्रि-तुंग बैठ शीत संग तंग हाल मॆं, सपूत एकता अखण्डता लियॆ अड़ॆ रहॆ ॥
प्रहार रॊज झॆलतॆ अशांति कॆ कुचाल कॆ, सदा निशंक काल-भाल वक्ष पै चढ़ॆ रहॆ ॥
अखंड भारती सुहासिनीं सुभाषिणीं कहॆ, सभी अघॊष युद्ध वीर शान सॆ लड़ॆ रहॆ ॥
कवि-"राज बुन्दॆली"
17/12/2013
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,,,,
Comment
राज बुन्देली जी
पहले पंच चामर, फिर दंडक वृत्त का विभेद अनंग शेखर i यद्यपि इस छंद में कोई बंधन नहीं है फिर भी 32 वर्णों को एक क्रम में निभाना भी कम चुनौती नहीं है i आपकी छंदाभिरुचि प्रशंसनीय है i मै आपको इस छंद रचना हेतु बधाई देता हूँ i परन्तु जैसा कि आदरणीय सौरभ जी ने भी कहा है आप रचना के पूर्व छंद का मीटर भी अवश्य बताये ताकि पाठक लाभान्वित हो सके i बहुत सुन्दर राज जी i
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना ......................
बहुत सुंदर रचना.सादर
भारत के वीरों की वीरता का सुंदर चित्रण, और तिरंगे के साथ सुंदर चित्र के लिए , हार्दिक बधाई राज भाई॥
आद., गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत आभार आपका,,,,,आपने रचना को स्नेह दिया,,,,,,और मेरा हौसला बढ़ाया,,,, धन्यवाद,,,,
आदरणीय , बस ! पढ के मजा आगया , आपको अनेक-अनेक बधाइयाँ ।
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