For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आजादी आखिर कितनी ?

स्त्री को आजादी वैदिक काल से ही मिली हुई है फर्क सिर्फ इतना है कि आज उस आजादी में कुछ निजी स्वार्थ समा गया है | वर्षों पहले से स्त्री को हर तरह की आजादी मिली हुई है अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनने की आजादी.अपने मन मुताबिक़ पति चुनने की आजादी,अपने मर्जी से शिक्षा क्षेत्र चुनने की आजादी यहाँ तक कि वो रण क्षेत्र में भी अपनी मर्जी से जाती थी | उन्हें कोई रोक-टोक नही थी इसके बावजूद वो अपनी पारिवारिक जिम्मदारियां भी बखूबी निभाती थीं और अपने पति के पीछे उनकी प्रेरणा बन के खड़ी रहती थी तो आज ऐसा क्यों नही ??

.
आज पति का सहयोग करना पत्नी को गुलामी क्यों लगता है परिवार के प्रति स्नेह और समर्पण पहले जैसा कहाँ है ? आज मांग है अपने मर्जी से कपड़े चुनने की फिर चाहें वो कपड़े शालीन हों या ना हों | अपना कैरियर बनने की ललक में बच्चे नर्सरी में पल रहें हैं | आज की स्त्री किस बात की आजादी मांग रही है समझ नही आता | जो वो आज मांग रही है वो तो उसे वर्षों पहले से मिली हुई है फिर किस  बात की मांग | अगर हमें बच्चों के सुनहरे भविष्य और पति की तरक्की के लिए अपने मन को अपनी खुद की अभिलाषाओं को थोड़ा मारना भी पड़े तो उसमे बुराई क्या है | हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ है फिर चाहें वो उसकी पत्नी हो या माँ |

.
सावित्री जो मद्रदेश के राजा अश्वपति की पुत्री थीं | उन्हों ने अपनी इच्छा से सत्यवान को पति चुना था | पिता अश्वपति बहुत सा-धन,अलंकार दे रहें थे पर सावित्री ने कुछ भी लेने से मना कर दिया था | एक राज कन्या और विदुषी होते  होते हुए भी जंगल में अपने पति और सास ससुर की सेवा करते हुए बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत किया और अपनी विद्वता के बल पर अपने पति के प्राण ही नही बल्कि अपने सास-असुर की आँखे और खोया हुआ राज्य भी धर्मराज से छीन कर ले आयीं थी |

.
कैकेई ना होतीं तो देवासुर संग्राम में राजा दशरथ का बचना मुश्किल था बावजूद इसके दशरथ की दो रानियों के साथ उनका अगाघ स्नेह था | भले ही रामायण में कैकेयी को नकारात्मक चरित्र में दर्शाया गया हो पर राम को राम बनने वाली कैकेयी ही थीं |
पत्नी विदद्योत्मा की प्रेरणा से ही कालीदास महाकवि कालीदास बन सके |
तुलसी को गोस्वामी तुलसी दास बनने वाली उनकी पत्नी रत्नावली ही थीं कारण चाहें जो भी रहा हो |
समुद्र गुप्त का वाल्याकाल माता कुमार देवी जैसी उदार एवं कर्तव्यनिष्ठ महिला के संगरक्षण में व्यतीत हुया था |उसके पचास वर्षों के शासनकाल में ना तो कही अशांति हुई ना ही किसी ने साम्राज्य के विरूद्ध विद्रोह करने का साहस किया |
यहाँ जीजाबाई का उल्लेख करना हम नही भूल सकते जिन्होंने शिवाजी जैसा वीर सपूत देश को दिया |
पूरा इतिहास भरा पड़ा है इन असाधारण स्त्रियों से जिन्होंने अपने दायित्वों का निर्वाह कर के अपने पति या बेटे को बुलंदी के शिखर पर पहुंचाया जिन्होने समाज को एक नयी दिशा और ज्ञान दिया |
इन सभी स्त्रियों की त्याग और तपस्या से समाज को इतने विद्वान पुरुष मिले जिन्होंने समाज को एक राह दिखाया
पर आज हम स्त्रियां छोटी-छोटी बातों को ले कर अपने अधिकारों की मांग करने लगतीं हैं और यही छोटी-छोटी बातें अदालतों तक पहुँच जाती हैं परिणाम ये होता है कि परिवार टूट जाते हैं जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे बच्चों पर पड़ता है,उनके भविष्य पर पडता है | हमें कौन सी आजादी चाहिए पति पूरी तनख्वाह ला कर हमारे हाथ में रख देते हैं और अपना पॉकेट मनी भी वो हम से ही मांगते हैं फिर कौन सी पाबंदी है हम पर ? पति भी सारा दिन नौकरी में माथा पच्ची कर के आते हैं तो घर में रह कर स्त्रियाँ घर की जिम्मदारियाँ क्यों नही उठा सकतीं | पति-पत्नी परिवार रुपी गाड़ी के दो पहिये हैं जिनका संतुलित होना निहायत जरूरी है | एक का बैलेंस बिगड़ जाए तो पूरे परिवार का बैलेंस बिगड़ जाता है और इसे संभालने की पुरुष से ज्यादा जिम्मेदारी हम स्त्रीयों के कंधे पर ही होती है इसका मतलब ये कत्तई नही कि ये हमारी गुलामी है |  स्त्रियां प्राचीन काल से ही हर क्षेत्र में आगे रही हैं और आज भी हैं, कमी सिर्फ ये आयी है कि आज की स्त्री अपनी छोटी-छोटी बातों को मनवाने के लिए ना जाने कौन-कौन से हथकंडे अपना रही हैं और झूठी आजादी के नाम पर अकेले जीवन यापन कर रहीं हैं |

.
यहाँ पर एक बात और है, किसी-किसी घर में पुरुषों के अमानुषी व्यवहार से इतनी त्रस्त हैं स्त्रियाँ कि घुट-घुट कर जीवन जीने को मजबूर हैं सिर्फ अपने बच्चों के भविष्य के लिए, जब कि पहले ऐसा नही था | पुरुष घर की स्त्रियों को मान-सम्मान देते थे | अपने हर निर्णय उनसे सलाह मश्वरा कर के लेते थे पर आज ऐसा नही है पुरुष अपना हर निर्णय खुद लेता है पूरा घर उसके आदेश से चलता है चाहें उसकी बात किसी को अच्छी लगे ना लगे पर किसी को विरोध करने की हिम्मत नही होती |

.
परिवार एक संस्था है जो समाज को स्वस्थ वातावरण देता है पर आज ये संस्था ही बीमार है तो समाज कहाँ से स्वस्थ होगा | पति-पत्नी के निजी स्वार्थ,उनके एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश और एक दूसरे से खुद को योग्य समझने की कोशिश की वजह से परिवार में तनाव व टूटन की स्थिति पैदा हो रही है जिसका सीधा असर बच्चों पर पड़ रहा है और आज के बच्चों से ही कल का समाज है | स्वस्थ परिवार से ही स्वस्थ समाज बनता है और समाज से स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण होता है इस लिए जरूरी है कि स्त्री अपनी शक्ति का सही उपयोग करे और स्त्री पुरुष दोनों ही अपने-अपने निजी स्वार्थ और अहम को छोड़ कर आने वाली नयी पीढ़ी को अच्छे संस्कारों से सिंचित करें जिससे फिर से देश को एक शशक्त नेतृत्व मिल सके जो ऐसे राष्ट्र का निर्माण करें जो भय मुक्त, लोभमुक्त हो, जो पदलोलुप ना हो |

*मीना पाठक*
मौलिक/अप्रकाशित   

Views: 721

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 12:21pm

प्रिय अरुन जी बहुत बहुत आभार लेख सराहने के लिए 

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 12:20pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी लेख सराहने हेतु ... हृदय से आभार स्वीकारें | सादर 

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 12:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 12:17pm

सादर आभार आदरणीया कुन्ती दी 

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 12:17pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी मेरा भी सादर प्रणाम स्वीकार कीजिये, लेख पर आप के स्नेह और आशीर्वाद हेतु सादर आभार 

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 12:14pm

आदरणीय गिरिराज जी सहमत हूँ आप से | सादर  आभार स्वीकारें आदरणीय 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2014 at 1:48pm

आदरणीया मीना जी लेख पर देरी से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ इतना सुन्दर लेख न जाने कैसे पढ़े बिना रह गया बहुत ही सुन्दर लेख है एक एक प्रश्न एक एक बातें जो आपने कहीं हैं सत प्रतिशत सत्य कही हैं कदाचित ऐसा ही नेक विचार और ऐसी सुन्दर सोच सभी को हो जाए तो फिर समस्या ही समाप्त हो जाएगी. हार्दिक बधाई इस शानदार लेख हेतु


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 1:41am

आदरणीया मीनाजी.. मैं विस्फारित नेत्रों से पूरे लिखे को एक साँस में पढ़ गया. आपके संयत लेख में कतिपय महान ऐतिहासिक पात्रों के नाम अवश्य छूट गये हैं, लेकिन विषय यह है ही नहीं. और जो विषय है उसका निर्वहन हर तरह से हुआ है.
यह नहीं है कि मेरा पुरुष संतुष्ट हुआ अपनी अहमन्यता को प्रश्रय पाता देख रहा है बल्कि यही सच्चाई है. प्रकृति ने पुरुष और स्त्री को गुण-धर्म ही नहीं दायित्व और व्यवस्थाएँ भी अद्वितीय दी हैं. उनक सम्मान न करना उनके परस्पर पूरक भाव को नकारना होगा.

आपकी इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए सादर धन्यवाद, आदरणीया.

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:29pm

उत्तम रचना के लिये हार्दिक बधाई.मीना जी.

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 6:18pm

आ0 मीना जी बहुत ही बढ़िया और सामयिक लेख । इस पर सुधि जनो की प्रतिक्रिया भी तरीफे काबिल है । आपको इस लेख के लिए बहुत बहुत बधाई । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
13 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service