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कल तक थी जाने कहाँ

आज आ रही है पास वो

देख नहीं पाये जो

जीवन के रंगों को

ले रही उन्‍हें भी

अपने आगेाश में वो

ना सुना नाम कभी

ना जाना पहचान ही

चुपके से चली आयी वो

तोड़ने उनकी सॉसे को

इल्‍जाम कभी लेती नहीं

अपने दामन पर वो कभी

है इल्‍जाम उनहीं पे

खत्‍म करती जिसका

जीवन वो

जीवन में नहीं रंग उतने

नाम उनका उतना हैं

आ जाती है चुपके से वो

जाने कब जीवन में

हो कर शिकार उनका  

छोड जाते जीवन को

पहले वाली बात नहीं अब

जब शिकार होते बुढे़ थे

क्‍या बच्‍चे

क्‍या जवान

शिकार होते नौनिहाल भी

नाम बडा है

काम बडा है

आताी पास वो

आसानी से

तुरंत आते आशोग में उनके

देखते रह जाते अपने सारे

एडस,कैसर,

जाने क्‍या क्‍या

नाम उनका

आता नित्‍य नया नया है

दिल जिसका शांत है

शिकार हो रहा

दिल के दौरे का

सुनी करती गोद किसकी

करती वो सूनी माँग है

करती बच्‍चे को अनाथ

तोड़ती राखी का प्‍यार है

आँखे गीली  ना कर पाता

पिता का ऐसा भाग्‍य है

कल जो करते थे बाते

देते आज मुखाअग्नि हैं

पूरे जीवन को

तहस नहत

कर जाती है

ये बिमारीयॉं

कर देती मजूबर ये

बीमारीयाँ

जीवन भर रोने को

मजबूर कर देती है

अखंड ये बीमारीयाँ

ये बीमारीयाँ।।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी की रचना

 

 

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Comment by Akhand Gahmari on December 25, 2013 at 11:27pm

आदरणीया coontee mukerji जी उत्‍साहवर्धन एवं आपके मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें

Comment by Akhand Gahmari on December 25, 2013 at 11:26pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी उत्‍साहवर्धन एवं आपके मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करें

Comment by coontee mukerji on December 25, 2013 at 9:26pm

जीवन का किताना कटु सत्य छिपा है इस रचना में.सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 4:43pm

आदरणीय अखंड भाई , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ॥

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