दो हमसफर
एक छत
रहे अजनबी की तरह
लब खुले तो टकरार
ना साँसे टकराती
ना बिन्दीयाँ भाती
ना विदाई
ना स्वागत
नजर चुराते
बीती राते
कभी
तन मन साथ
हँसी उमंग चाहत प्यार
लगी नजर
बने नदी के
दो किनारे
बीच में
शक
केवल शक
बाँट दिया प्यार
एक ना सुनते
एक दूजे की बाते
स्वाभिमान
विद्रोह
गुस्से की
ज्वाला जला रही
प्यार को
खत्म समझ
नदारद सोच
दिल दिमाग
बना पत्थर
टकरा लौटती
एक दूजे की बाते
खत्म विश्वास
अलगाव की चाहत
कल चाहत का घर
आज दिवारो का घेरा
और शक था
बीच का रोडा
जो मिटने को नहीं
तैयार था
क्योंकि वह
आज का शक था
आधुनिकता के दौड़ में
बदलते रिश्तों
के बीच का
शक था
एक शक
देा अक्षरों से बना
शक
बर्बाद कर रहा था
अखंड पूरे जीवन को
पूरे जीवन को
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी की रचना
Comment
आदरणीया डा0 प्राची सिंहं दीदी जी आपको प्रणाम आप मेरी एक रचना आत्मंथन पर आयी और अपने विचारो से अवगत करायी उसके बाद मैने यथा संभव प्रयास किया कि सपाट बयान बाजी किसी रचना में ना हो, सफल रहा या नही इसका बात को आप ही बता पायेगी। आप पुन: मेरी रचना पर आयी और अपने विचार रखा मैं आपका आभारी हूँ, मै प्रयास करूगा कि आपको दुबारा शिकायत का मौका ना मिले आपके मार्गदर्शन का आकांक्षी अखंड गहमरी
शक दीमक की तरह वास्तव में जीवन को खोखला ही कर देता है.... इस दानव से तो बच कर ही रहना चाहिए
आ० अखंड गहमरी जी...आपको मंच पर काफी समय हो गया अब, आपसे अतुकांत प्रस्तुतियों में प्रस्तुतीकरण के क्रम में थोडा और मनन-मंथन और शिल्प पर ध्यान देते हुए प्रस्तुतियां देने की अपेक्षा बन गयी है. बाकी प्रस्तुतियों और साथ ही उन पर हुई चर्चाओं को पढ़ते चलें बहुत कुछ स्पष्ट होता जाएगा, अभिव्यक्तियाँ स्वतः ही सधती चलेंगी.
इस प्रस्तुति पर सादर बधाई
शुभकामनाएं
शक का कोई इलाज नहीं.....और क्या कहें..इस अभिव्यक्ति के लिये हार्दिक बधाई.
शक एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज हकीम लुक़मान के पास भी नहीं था । अच्छे खासे जीवन को बर्बाद करता है ये शक ।
अच्छी रचना , बधाई आपको ।
आपके आगमन और उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी रहेगें आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवak जी सादर नमस्कार आपको
आपके आगमन और उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी रहेगें आदरणीया Meena Pathak जी सादर नमस्कार आपको
आधुनिकता के दौड़ में
बदलते रिश्तों
के बीच का
शक था
एक शक
देा अक्षरों से बना
शक
बर्बाद कर रहा था
अखंड पूरे जीवन को
पूरे जीवन को........................बहुत सुन्दर , बदलते माहौल में बदलते रिश्तों की सच्चाई बखूबी से बयान की आप ने अपनी रचना के माध्यम से आदरणीय अखंड जी ... बहुत बहुत बधाई आप को इस उत्कृष्ट रचना हेतु | सादर
शक ! बेशक करता है सर्वनाश i भावनाओ का स्वागत i
आपके आगमन और उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी रहेगें आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर नमस्कार आपको
आदरनीय अखंड भाई , बहुत सुन्दर रचना की है / शक सही मे घर को बरबाद कर देता है ॥ आपको अनेकों बधाइयाँ ॥
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