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आँधी से उजड़ा शजर लगता है
वो बुलन्द अब भी मगर लगता है
सिर्फ किरदार नये हैं उसके
इक पुराना वो समर लगता है
बेकरानी में कहीं गुम शायद
इक बियाबान में घर लगता है
वो कहीं शिद्दते- तूफ़ाँ तो नही
रास्ता छोड़ अगर लगता है
पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो
तेरे हाथों में हुनर लगता है
काँच का दिल है ज़बाँ पे पत्थर
बच के जाऊँ मुझे डर लगता है
आपके दम से जहीं है ये कलम
आपका दिल पे असर लगता है
समर = किस्सा या कहानी
बेकरानी = असीम विस्तार
जहीं(जहीन) = दक्ष
मुजस्सम = साकार
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
शानदार गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय शिज्जु जी ..................
बहुत खूब , आपको हार्दिक बधाइयाँ ................................. |
अच्छी गज़ल हुई है , बधाई शिज्जु भाई।
behad khoobsoorat gazal aur gazal ke hr khoobsoorat sher ke liye mubarak baad kabool farmaayen aa.Shijju jee
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