मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,
हकीकत के सीने में दफ़्न,
कुछ इच्छाओं की
उन धुँधली यादों को,
मेरे सपनों की लाशों को,
अब तक ढो रहा हूँ मैं…
कई दफे
ज़िन्दगी करीब से गुज़री,
मगर,
मैं ही जी न पाया..
आज मुझे लगता है
मैंने बहुत कुछ खो दिया,
पहले जो खोया है..
उसे याद कर,
और फिर,
उन्हीं यादों में खोकर,
एक लम्बा सफर तय किया,
मगर,
आज मुझे लगा
कि मैं वहीं हूँ!
वहीं हूँ जहाँ से चला था……
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया वंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई नीरज जी हर किसी की अपनी अपनी सोच है, खुद को सही साबित करने के लिये कई दफे ऊटपटांग तर्क दिया जाता है
आदरणीय अखिलेश सर रचना को पसंद करने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय अजय शर्मा जी रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई नीरज जी हर आदमी नशे में है और अक्सर अहंकार की रस्सी में खुद को बाँध के बहुत बहुत बड़ी गलती करता है रचना की सराहना के लिये आपका आभार
भाई जितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय राज बुन्देली जी रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज जी रचना को समय देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपने रचना के मर्म को समझा और रचना को सराहा आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया कुन्ती जी आप जैसी रचनाकारों का अनुमोदन हमेशा ही उत्साहवर्धन करता है, सराहना के लिये आपका आभार
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