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मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया

 

चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ

बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया

 

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया

 

मायूस हुआ तेरी तीखी बातों से

आईना दिखलाया ये एहसान किया

 

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया

 

हाथ न आया लोगों के कोई इल्ज़ाम

बस मेरी मर्गे वफा का एलान किया

 

छोटे से इक झोंके को जाने कैसे

काबू करके उसने यूँ तूफान किया

 

रात गुज़ारा तन्हा मैंने आँखों में

तेरी यादों को अपना मेहमान किया

 

औराक़ =पन्ने, दीवान = किसी शायर के ग़ज़लों की किताब, ऐवान = महल

मर्गे वफा = वफा की मौत

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:40pm

आदरणीय सौरभ सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 3:44pm

इस सार्थक कोशिश के लिए हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 9, 2014 at 8:10pm

आदरणीय नादिर भाई जर्रा नवाज़ी के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 9, 2014 at 8:09pm

भाई अरुण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by नादिर ख़ान on January 9, 2014 at 3:59pm

आदरणीय शिज्जु शकूर जी,कितना खज़ाना छुपा हुआ है आपके अंदर, एक एक रचना के माध्यम से बाहर आ रहा है। एक और शानदार रचना के लिए बधाई स्वीकारें ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 9, 2014 at 11:30am

आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहद शानदार उम्दा तरही ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर अच्छे बन पड़े हैं ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 8, 2014 at 10:44pm

भाई आशीषजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 8, 2014 at 10:43pm

भाई बैद्यनाथ जी आपका आभार, आपने सही कहा एक शब्द छूट गया है

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 8, 2014 at 10:35pm

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया |     वाह वाह वाह  !!

बढ़िया ग़ज़ल भाई शिज्जु जी !!

Comment by Saarthi Baidyanath on January 8, 2014 at 10:21pm

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया

रात गुज़ारा तन्हा मैंने आँखों में

तेरी यादों को अपना मेहमान किया...बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है साहब ...उम्दा !

 

छोटे से इक झोंके को जाने कैसे

काबू करके उसने तूफान किया....इस शेर में कुछ सानी में छुट गया है ..ऐसा लग रहा है ..मैं गलत भी हो सकता हूँ ..एक बार जरुर देख लें !..सादर :)

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