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ताब जो मेरे इरादों में है- शिज्जु

2122 1122 22/112

 

तिश्नगी में न सराबों में है

ताब जो मेरे इरादों में है

 

चहचहाते हुये पंछी ये कहें

ज़िन्दगी अब भी खराबों में है

 

ध्यान से पहले सुनो फिर समझो

क्या हकीकत मेरे दावों में है

 

बादलों की ये शरारत है जो

चाँद का नूर हिजाबों में है

 

अब तलक तेरी ज़ुबाँ पे थी वो

बात अब मेरे सवालों में है

 

काम आयेगी अकीदत आखिर

ऐसी तासीर दुआओं में है

ताब= शक्ति, सराब= मरीचिका, खराबा= खण्डहर

तासीर= असर, अकीदत= विश्वास

 

-मौलिक तथा अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:46pm

आदरणीय वीनस जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:36am

तिश्नगी में न सराबों में है

ताब जो मेरे इरादों में है



वाह ज़नाब क्या कहने ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:49pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:49pm

भाई राम शिरोमणि जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:48pm

आदरणीया महिमा जी रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:47pm

भाई जीतेन्द्र जी आपकी सक्रिय उपस्थिति हमेशा उत्साहित करती है आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:46pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर रचना की सराहना के लिये आपका आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:46pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:45pm

आदरणीय अजय जी आपका आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 12:37am

भाई सिज्जू  जी,ग़ज़ल बढिया हुई है

बधाई

कृपया ध्यान दे...

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