मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,
हकीकत के सीने में दफ़्न,
कुछ इच्छाओं की
उन धुँधली यादों को,
मेरे सपनों की लाशों को,
अब तक ढो रहा हूँ मैं…
कई दफे
ज़िन्दगी करीब से गुज़री,
मगर,
मैं ही जी न पाया..
आज मुझे लगता है
मैंने बहुत कुछ खो दिया,
पहले जो खोया है..
उसे याद कर,
और फिर,
उन्हीं यादों में खोकर,
एक लम्बा सफर तय किया,
मगर,
आज मुझे लगा
कि मैं वहीं हूँ!
वहीं हूँ जहाँ से चला था……
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया डॉ प्राची जी आपके शब्दों से बहुत हौसला मिला है आपका बहुत बहुत शुक्रिया
कई दफे
ज़िन्दगी करीब से गुज़री,
मगर,
मैं ही जी न पाया..
आज मुझे लगता है
मैंने बहुत कुछ खो दिया,
पहले जो खोया है..
उसे याद कर,
और फिर,
उन्हीं यादों में खोकर....................सुन्दर आत्म मंथन करती रचना
शुभकामनाएं
बहुत बहुत शुक्रिया आपका स्नेह बना रहे
बधाई.. .
लिखते रहिये.. . शुभ-शुभ
आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका
सुंदर रचना , बधाई आपको आ0 शिजू जी ।
आदरणीय बृजेशजी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
वाह! गज़ब! बहुत ही सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
भाई अरुणजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय सुजीत जी आपका आभार
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