जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(१)
जो ज़िंदगी जिया कि
जैसे हो किराए का मकान
रहा तैयार हर समय
जो साँस का लिए सामान
सुखों की कोई चाह नहीं
दुखों में कोई आह नहीं
डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(२)
जो चल दिया तो चल दिया
जिसे नहीं सबर है कुछ
नदी है क्या पहाड़ क्या ,
नहीं जिसे ख़बर है कुछ
जो नींद से बिका नहीं
थकन में जो टिका नहीं
रूकावटों की भीड़ में , कभी कहीं रूका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(३)
जिसे सफ़र में हम-सफ़र
की तलाश है नहीं
जिसे नहीं है , फ़िक्र
कोई मेरे साथ है नहीं
जो प्रीति में रुंधा नहीं
जो रीति से बँधा नहीं
जो गीत गाता चल दिया , कभी कहीं रूका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(४)
ह्रदय में क्रांति है भरी ,
परंतु प्रेम प्रान है
मंज़िलें हैं हाथ में ,
मगर क़दम जहान है
अहम का जो सगा नहीं
सुपथ से जो डिगा नहीं
जो सिर्फ़ जीत के लिए , दौड़ में टिका नहीं
उसे डरा सकी न मौत वो कभी मरा नहीं
(५)
मंज़िलें हैं दूर , रात का
सफ़र धुआँ सा है
ये ज़िंदगी है इक समर
नहीं कोई जुआँ सा है
कभी भी आँख नम न हो
स्वम कभी विषम ना हो
भोर की इक माँग पर , जो जला किया रूका नहीं
उसे डरा सकी न मौत वो कभी मरा नहीं
प्रस्तुति मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा
Comment
आ० अजय शर्मा जी
सुन्दर चिन्तन को शब्द दिए हैं आपने इस गीत में...
गीत पर अक्सर मंच पर काफी चर्चाएँ होती रहती हैं, आप उन पर अवश्य ही गौर करते चलें, मात्रिकता या गेयता के नियमों को साथ ही शब्द विन्यास को भी समझते हुए गीतों को साधने का प्रयत्न करते चलें. मात्रिकता पर कुछ पोस्ट्स हिंदी की कक्षा समूह में साथ ही छंद विधान समूह में उपलब्ध हैं.
जो नींद से बिका नहीं
थकन में जो टिका नहीं
जो प्रीति में रुंधा नहीं
मगर क़दम जहान है
अहम का जो सगा नहीं ............ये कुछ ऐसी पंक्तियाँ हैं जो तार्किकता के नज़रिये से और समय चाहती हैं
एक विशेष बात* देवनागिरी लिपि में टंकण का सबसे आसान उपाय GOOGLE IME download करना है..इससे ओफलाइन भी देवनागिरी लिपि में बहुत आसानी से टाइप जा सकता है.
शुभकामनाएं
भाई जी आप आहत हो गए? आहत होने जैसी तो मैंने कोई बात नहीं कही! मैंने एक सामान्य बात कही है! ऐसा इस मंच पर बहुत लोग करते हैं!
आप टिप्पणी करते हैं, बहुत अच्छी बात है! आपका हार्दिक आभार!
आपकी रचना पर जिन लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है उन सभी को प्रतिउत्तर भी दे दिया करें, सभी को अच्छा लगेगा!
आदरणीय अपनी रचना पर आपके आशीष के लिए प्रतीक्षारत हूँ!
nahi sir ye baat nahi ......aise nahi hai ....ki mai rachnakaro ki post par tippadi nahi deta hoo.... aisa to kadapi nahi hai .....yah to manch par hi sakshya swaroop apko mil jayega ..rahi baat devnagiri ki to , purva me bhi maine isi manch se is sandarbh me 'ganesh ji " se help lithi kintu system problems se karan safal nahi hua ,,,, ..."sadhan 1 va 2 par baar baar jakar tippadi dene se behtar mujhe lagta hai zyada se zyada rachnayo ko padh sakoo aur unhe sarah sakoo.......kintu .....ye kataksha kis par kiya gaya hai mai samajh nahi saka ......"कुछ लोगों ने यह प्रथा बना ली है कि अपनी रचना पोस्ट की और बस काम ख़त्म! न तो वे दूसरे रचनाकार की रचना पर टिप्पणी करते हैं और न ही अपनी रचना पर प्राप्त टिप्पणियों का उत्तर! क्या बाकी सदस्यों का समय फालतू है? """ yadi apki comments mujh par hai to mai khud ko aahat pata hoo....mere koshish rahti hai ki alpagya , takniki gyan na hote huye bhi sabhi rachnayo ko paryapta samman de sakoo.....shesh apki soch aur chintan ka vishaya hi rahega,................
इस मंच पर यह प्रथा है कि रचना पर जितने भी लोग टिप्पणी करते हैं, उन सबको प्रतिउत्तर रचनाकार देते हैं. कुछ लोगों ने यह प्रथा बना ली है कि अपनी रचना पोस्ट की और बस काम ख़त्म! न तो वे दूसरे रचनाकार की रचना पर टिप्पणी करते हैं और न ही अपनी रचना पर प्राप्त टिप्पणियों का उत्तर! क्या बाकी सदस्यों का समय फालतू है?
अजय शर्मा भाई जी, आपने लिखा है- //devnagri me tippadi karna mujhe dushkar aur samaya sadhya prateet hota hai// इसका क्या मतलब? इस मंच पर साधन उपलब्ध हैं, आप उनका प्रयोग करें भाई जी.
आपको देवनागरी में टिप्पणी करना दुष्कर प्रतीत होता है फिर इतनी बड़ी रचना देवनागरी में कैसे लिख ली भाई? आपकी तरह हर सदस्य बचने लगे फिर तो रोमन में ही हिंदी लिखी जायेगी! अपनी भाषा और लिपि के लिए कुछ कष्ट उठा लें भाई जी!
aapne to meri tippadi to nahak hi dil se liya ........binduwar uttar doo...yadi bura na name .....sheekna nahi chahta hoo ....aur manta nahi hoo aise to hargiz nahi kahe priya ........maine to kewal pooncha hi tha .,....ki trutiyan ....tankad ki thi ya fir kuch aur ......agretar ...maine kantak trutiyan ....shabh nahi suna hai isliye ...likha .....yadi apko bura laga ........to hridaya tal se apse kshma chahta hoo.......kintu mahodaya yadi aap tonke aur batayenge nahi to sudhar hoga kaise...............II...........devnagri me tippadi karna mujhe dushkar aur samaya sadhya prateet hota hai .......yadi koi aur sadhan ho to bataye .........
आदरणीय अजय शर्मा जी सर्वप्रथम तो आप टिपण्णी देवनागरी में करें यदि संभव हो. दूसरी बात समस्या यह है कि आप स्वयं सीखना या मानना नहीं चाहते हैं यदि ऐसा ही है तो भविष्य में आपकी रचनाएँ छोड़कर आगे बढ़ जाऊँगा बिना टिपण्णी किये. सादर
arn ji ....comments hetu hardik sukriya ....ye kantak ......trutiyan hain ya tankan hai .......typing mistakes hain to samajh aaya .....kintu kantak mistakes .....samajh nahi saka .......kripaya ......make it clear.....
आ0 अजय जी सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।
आदरणीय अजय जी अच्छा प्रयास किया है आपने कुछ कंटक त्रुटियाँ हैं उन्हें सुधार हैं. प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.
परंतु प्रेम प्रान है .. ये प्रान क्या है ?
अच्छी रचना है! आपको हार्दिक बधाई!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online